
बन्नेना दर्शन एक साथे थाय. एना महिमानी शी वात! तीर्थधाममां संत ऊभा
होय ने ए तीर्थनो महिमा समजावता होय एवा धन्य प्रसंगो गुरुप्रतापे
आपणने यात्रामां प्राप्त थया....एक वार नहि पण आठ वार! –आठ वार!
जी....हा....आठ वार, बे वार बाहुबली–पोन्नूरयात्रा एकवार सम्मेदशिखरयात्रा,
त्रणवार गीरनारयात्रा ने बेे वार शत्रुंजययात्रा–गणो जोइए, केटली यात्रा थइ?
हजी भोपाल तरफ गया ते वखतनी सिद्धवरकूट, पावागीर वगेरेनी यात्रा तो
आमां गणता नथी.
थयो छे. आवा महान तीर्थोनी यात्रा ने आवा पवित्र संतोनो योग–खरेखर
संसारना सर्व कलेशोने भूलावी दे छे. संतना शरणमां के तीर्थना आवासमां
जीवन आनंदित बने छे, आराधनानो उत्साह जागे छे, आराधक जीवो प्रत्ये परम
बहुमान जागे छे. समयसारमां तथा भगवती आराधना वगेेरेमां वीतरागी
आचार्योए मात्र सम्यग्दर्शनधारक संतधर्मात्मानो पण केटलो अगाध महिमा
समजाव्यो छे!–जे वांचता पण मुमुक्षुने रोमे रोमे प्रसन्नता थाय तो एवा
धर्मात्मारूप तीर्थना साक्षात् दर्शननी शी वात!! अहा, आत्मानो साक्षात्कार
पामेला जीवोनी मुद्रानुं दर्शन प्राप्त थवुं ते परमात्मानो साक्षात्कार थवा समान
छे. आ काळे तो साक्षात् भगवानना दर्शन जेटलो ज धर्मात्माना दर्शननो महिमा
छे. जेम सम्मेदशिखर वगेरे पावन तीर्थोनुं दर्शन तीर्थंकरभगवंतोने याद करावे छे
तेम चैतन्य साधक धर्मात्मानुं दर्शन पण पूर्ण परमात्मपदनुं स्मरण करावीने तेने
साधवानी प्रेरणा जगाडे छे. जेम तीर्थना दर्शन माटे जीवो (अगाउ–तो पगपाळा
जता ने मांड बे त्रण वर्षे यात्रा थती) गमे तेटली मुश्केली होंशथी ओळंगीने पण
तीर्थयात्रा करे छे, तेम मोक्षनो यात्रिक एवो आत्मार्थी जीव जगतनी गमे तेवी
मुश्केलीओने पण होंशथी भोगवीने धर्मात्मानो साक्षात्कार करे छे....तेनी छायामां
रहे छे. प्रत्यक्ष धर्मात्मा प्रत्ये परम प्रीति–भक्तिरूप उल्लासभाव जेने न जागे
तेने तीर्थ प्रत्ये पण खरो उल्लास होतो नथी; केमके तीर्थोनो संबंध तो धर्मात्माना
गुणोनी साथे छे; जगतमां जे कोइ तीर्थ होय ते कोइपण