Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
ः प४ः वैशाख सुद २
तीर्थ महिमा
रत्नत्रयरूप भावतीर्थवडे संसार तरतां तरतां, जे पवित्र
संतोए पोतानी पावन चरणरज वडे भूमिने पण
तीर्थरूप पूज्य बनावी ते संतोने नमस्कार हो, तेमनी
साधनाभूमिरूप तीर्थने नमस्कार हो.
तीर्थनो अपार महिमा छे के एनी यात्रा करतां अनेक आराधक जीवोनुं
स्मरण थाय छे ने जिज्ञासुने आत्मसाधनानी प्रेरणा जागे छे. तीर्थभूमि तो
देवभूमि छे; देव–गुरु–शास्त्रनी पूजामां देवनी पूजानुं जे स्थान छे लगभग ते ज
स्थान तीर्थपूजानुं छे. तीर्थयात्रा करनार मुमुक्षुयात्रिक तीर्थयात्रा वखते संसारथी
पार कोइ अनेरा शांत वातावरणमां अध्यात्मभावनाओनी ऊर्मिओनो आनंद
महाले छे.–अने तेमांय, जो ते तीर्थयात्रा कोइ धर्मात्मा–संतनी साथे होय तो एना
महिमानुं शुं कहेवुं?
आपणा आ गं्रथनायक पू. श्री कानजीस्वामीए हजारो यात्रिको साथे
भारतना महानतीर्थोनी उल्लास अने भक्तिपूर्वक यात्रा करीने जैनशासनमां एक
सोनेरी इतिहास रच्यो छे. ए सम्मेदशिखर ने ए पावापुरी, ए राजगृही ने ए
चंपापुरी, ए गीरनार ने ए शत्रुंजय, ए सिद्धवरकूट ने ए बडवानी, ऊंचा ऊंचा
अडोलजोगीए बाहुबली ने ए पावनधाम पोन्नूर, ए रत्नप्रतिमाने
सिद्धांतगं्रथो.....ए अयोध्या ने ए हस्तिनापुरी, ए शौरपुरी ने ए काशी....ए
मथुरा ने ए खंडगिरि, उदयगिरि, ए कुंथलगिरि–द्रोणगिरि ने
मुक्तागिरि...अहा, केवा केवा ए तीर्थो!! ने केवी भावभीनी ए यात्रा!!–एनां
स्मरणो पण ए साधक संतो प्रत्ये ने ए साधनाभूमि प्रत्ये केवी आनंदनी
उर्मिओ जगाडे छे! वाह रे वाह! संतो तमारी आत्मसाधना! वाह तमारी
तिर्थभूमि! अने धन्य एनी यात्रा!