
करतां हृदयमां जे हर्षभरी उर्मिओ जागी ते आ काव्यमां गूंथाणी छे. अहा!
संतो केवा स्नेहथी शिष्यजनने पोतानी साथे मोक्षमां लइ जाय छे!!
छोड परभावने....झूल आनंदमां......
निज साथ मोक्षमां लइ जवा भव्यने,
श्री मुनिराज संबोधता व्हालथी...... हे सखा!
सांभळी बुद्धिने वाळीने
निज स्वरूपने एकने ग्रह तुं,
ए ज आगम तणा मर्मनो सार छे.... हे सखा!
सूज्ञ पुरुष तो सूणी आ शिखने,
हर्षथी उल्लसी छोडे पर भावने;
परमानंद–भरपूर निज पद ग्रही,
शुद्ध स्वरूपमां वेगथी ते वळे..... हे सखा!
अमे जशुं मोक्षमां, केम तने छोडशुं?
आवजे मोक्षमां तुंय अम साथमां....
भव्य निज पदने साधजे भावथी,
शिख आ संतनी शीघ्र तुं मानजे..... हे सखा!
तीर्थपति मोक्षमां जाय छे जे भवे,
गणपति पण जरूर जाय छे ते भवे,
शिष्य ए संतना रत्नत्रय साधीने....
संतनी साथमां मोक्षमां जाय छे.... हे सखा!