Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
वैशाख सुद २ः प७ः
“आत्मधर्म”ना गतांकमां पहेले पाने आपणे बे चित्रो आप्या हता, तेमां एक
चित्र उपर मुजब हतुं. ए चित्र नथी तो कलकत्ताना हावराब्रीजनुं के नथी बीजी कोइ
नदीना पूलनुं.–ए द्रश्य तो छे सोनगढना जिनमंदिरनुं! हजी तमे न ओळख्युं? सं.
२०१२मां ज्यारे सोनगढनुं मोटुं जिनमंदिर बंधातुं हतुं अने तेनी छत भराती हती
त्यारे छतनी नीचेना बीमनी मजबूती माटे तेमां वच्चे जे लोखंडना सळिया बांधवामां
आवेला, ते ज उपरना चित्रमां देखाय छे. आ उपरथी जिनमंदिरनी भव्यतानो ने
मजबूतीनो ख्याल आवी शकशे.
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चारभाई
चार भाई छे....महा सुंदर, महा पवित्र, महा समर्थ.....एनी माता छे
जिनवाणी....एना पिता छे एक मुनिराज....एनुं मोसाळ छे महाविदेहमां.....एनुं
जन्मस्थळ छे पोन्नूरधाम. चारेय भाईओ झरीयनना सुंदर वस्त्राभूषणथी सोनगढना
स्वाध्यायमंदिरमां शोभी रह्या छे....कहानगुरुने ए चारेय भाईओ बहुज वहाला छे,
ने एमनी पासेथी हंमेशा कंइक ने कंइक नवुं जाणे छे. जोके तेमने बीजा पण केटलाक
भाईओ छे, पण आ चार भाईओ तो जैनशासनमां अजोड छे....अनेक संतमुनिओए
तेमनुं बहुमान कर्युं छे....ने कोइक मुनिओए तेमनी टीका पण करी छे....
ओळख्या तमे ए चार भाईने...
‘आत्मधर्म’ना आवता अंकमां तमने ए चारे भाईओना दर्शन थशे.