हर्षानंदनो कोलाहल थई रह्यो हतो....मोहमयीने बदले ‘बनारसी’ बनवानुं सौभाग्य
प्राप्त थवाथी मुंबईनगरी आजे गौरव अनुभवती हती. चारेकोर भक्तजनो विविध
भक्ति करी रह्या हता....ने जन्म–वधाईना मंगल गीत गाता गाता मेरूतीर्थनी
प्रदक्षिणा करता हता. अभिषेक बाद ए होनहार २३मा तीर्थंकरनुं पूजन करीने ईन्द्रोए
भक्ति प्रदर्शित करी हती... बपोरे प्रभु पार्श्वकुंवरनुं पारणाझुलन थयुं हतुं....हजारो
भक्तोए प्रमथी भगवानने झुलाव्या हता. रात्रे अश्वसेन महाराजानी राजसभामां
पार्श्वकुमार पण बेठा हता....देशोदेशना राजवीओ राजसभामां आवीने विविध भेटो
धरता हता....सेंकडो राजवीओए आवीने भेट धरी....हजी अयोध्यानगरीथी रवाना
थयेला राजदूत आववाना बाकी हता.....
अयोध्यानगरीना राजदूत उत्तम भेटो लईने आवी पहोंच्यां. राजकुंवरे पूछयुं :
अयोध्यानी शोभा केवी छे? त्यारे उत्तरमां राजदूते अयोध्यानगरीनुं आश्चर्यकारी वर्णन
कर्युं. त्यां थई गयेला ऋषभदेव तीर्थंकरोनी महत्ता वर्णवी... जे सांभळतां ज
पार्श्वकुमारनुं चित्त पलटी गयुं. अरे, ऋषभादि तीर्थंकरोना आयुष्य तो लांबा हता,
अत्यारे तो आयुष घणा टूंका छे... संसारना भोग खातर मारो अवतार नथी पण
आत्मानी पूर्णता साधीने तीर्थंकर थवा मारो अवतार छे... मारे मारी परमात्मदशा
साधवानी छे, राजभोगमां जीवन वीताववुं मने पालवे तेम नथी....आथी अनेक गणा
भोगवैभव अच्युतादि स्वर्गमां अनेकवार आ जीवे जोया छे, पण जीवने तेनाथी कदी
तृप्ति थई नथी....हवे तो मुनिदशा प्रगट करीने चैतन्यना अतीन्द्रिय आनंदमां झूलता
झूलता केवळज्ञान प्रगट करीशुं... आवी वैराग्यस्फूरणा थतां ज लौकांतिक देवो आवी
पहोंच्या ने भगवाननी स्तुतिपूर्वक वैराग्यनी अनुमोदना करी... ईन्द्रो पण
दीक्षाकल्याणक उजववा आवी पहोंच्या.... पारसकुमारे दीक्षा माटे वनगमन कर्युं.
दरियाकिनारे एक सुंदर वन वच्चे भगवाननी दीक्षानो महोत्सव थयो....... अहा,
वैराग्यभर्या वातावरण वच्चे हजारो जीवो ए प्रसंग अनुमोदी रह्या हता. दीक्षा बाद ए
वैराग्यवनमां कानजीस्वामीए मुनिदशानो महिमा समजावतुं प्रवचन कर्युं....अने
उदेपुरना भाईश्री झमकलालजीए ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा अंगीकार करी. बपोरे बालिकाओए
अंजनासतीनुं नाटक कर्युं हतुं. रात्रे पार्श्वप्रभुना दस पूर्वभवोना द्रश्यो सहित वर्णन
थयुं हतुं.... अहा, कमठना जीवे क्रोधथी दसदस भव सुधी घोर उपद्रवो कर्या, ने भगवाने
क्षमाभावथी ते सहन कर्या... दसभव सुधी क्रोध अने क्षमा वच्चेनी जाणे लडाई चाली,
ने अंते क्रोध