सदाय अथडामण चाल्या ज करे छे, अज्ञानीओ क्रोधथी उपद्रव करतां आवे छे ने
ज्ञानीसाधको क्षमाथी सहन करतां आवे छे..... आराधकने अनेक उपद्रवो आवे छे ने ते
पोतानी आराधनामां अडग रहे छे, पत्थर वरसे के पाणी, अग्निनी जवाळा हो के
सर्पोना फूंफाडा हो, ज्ञानी पोतानी आराधनामांथी डगता नथी. अंतिम भवमां
आत्मध्यानमां मग्न पार्श्वमुनिराज उपर कमठना जीव संवरदेवे पत्थर पाणी ने अग्निवडे
ज्यारे घोर उपद्रव कर्या अने अचानक धरणेन्द्र–पद्मावतीए आवीने भक्तिथी छत्र
धरीने उपद्रव दूर कर्यो ने कमठना जीवने पश्चात्ताप थयो त्यारे ए भक्तिभर्यो प्रसंग
देखीने, – क्रोध उपर क्षमानो विजय देखीने, सभामां हर्ष छवाई रह्यो, पार्श्वप्रभुना
जयजयकारथी समामंडप गुंजी ऊठ्यो.
मणिलाल जेठालाल अने तेमना कुटुंबीजनोने मळ्यो हतो. बीजा हजारो साधर्मीओ
भक्तिपूर्वक ए प्रसंगने अनुमोदी रह्या हता. बपोरे अनेक जिनबिंबो उपर
अंकन्यासनी विधि थई. पू. श्री कानजीस्वामीए भक्तिपूर्वक जिनबिंबो उपर अंकन्यास
कर्या. अंकन्यास थता जिनेन्द्र भगवंतोने देखीने सौ भक्तोने घणो हर्ष थतो हतो.
अंकन्यासविधि पछी तरत केवळ–ज्ञानकल्याणकनो उत्सव थयो.
धरणेन्द्र उपर राग. एमणे तो वीतराग थईने सर्वज्ञपद साध्युं ने उत्तम क्षमानो
सर्वोत्तम आदर्श जगतसमक्ष रजु कर्यो. भगवानने केवळज्ञान थतां ज ईन्द्रो आवी
पहोच्यां.... समवसरणनी सुंदर रचना थई....ईन्द्रोए प्रभुनी सर्वज्ञतानुं पूजन करीने
केवळज्ञान–कल्याणक उजव्यो. ने पछी कहानगुरुनुं प्रवचन थयुं, तेमां भगवाननी
सर्वज्ञतानो महिमा बताव्यो....रात्रे भजन–भक्तिनो तथा विद्वानोना भाषणनो
कार्यक्रम हतो.
दिवस हतो. सम्मेदशिखर महानतीर्थनी रचना उपर ऊंचीऊंची २५ टूंको शोभती हती.
सौथी ऊंची सुर्वणभद्र टूंक उपर प्रभु पारसनाथ अर्हंतपदे बिराजी रह्या हता;
योगनिरोध करीने थोडीवारमां भगवान अयोगी थया....सम्मेदशिखरनी टोच उपर ए
अयोगी