Atmadharma magazine - Ank 248
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : जेठ : २४९०
छवाई जतो. पार्श्वप्रभुना पूर्वभवोनुं सचित्र वर्णन एकवार
‘सुवर्णसन्देश’ मां आवी गयुं हतुं. ते सौने पसंद पडेल. हालमां
मुंबईनगरीना महोत्सवमां पण पार्श्वप्रभुना पंचकल्याणक अने
तेमना दस भवोना चित्रो अने कमठना उपद्रव, वगेरे द्रश्यो
जोया....ते उपरथी अहीं आत्मधर्ममा पण पार्श्वप्रभुना पूर्वभवोनुं
सचित्र वर्णन टूंकमां आपीए छीए.
(ब्र. ह. जैन)
पूर्वे दसमा भवे पारसनाथनो जीव मरूभूति हतो; ने कमठनो जीव तेनो मोटो
भाई हतो. बंने सगाभाई....एकवार दोषवशात् राजाए ते कमठने गाममांथी काढी
मुक्यो; अपमानित कमठ त्यागीबावो थई, हाथमां शिला उपाडी, कुतप तपी रह्यो हतो.
पाछळथी मरूभूतिने आ वातनी खबर पडतां, बंधुप्रेमथी प्रेराई, तेने घेर तेडी लाववा
तेनी पासे गयो, ने नमस्कार करी क्षमा मांगवा जाय छे त्यां तो क्रोधपूर्वक कमठना जीवे
हाथमांनी मोटी शिला तेना उपर पटकी; मरूभूतिनुं मृत्युं थयुं.
मरूभूतिनो जीव मरीने हाथीपणे ऊपज्यो. अने कमठनो जीव क्रोधपरिणामनी
तीव्रताथी मरीने भयंकर सर्प थयो. आ बाजु मरूभूतिना मृत्युनी वात सांभळी वैराग्य
पामी राजा दीक्षित थया. एकवार अनेक मुनिवरो साथे सम्मेदशिखरतीर्थनी यात्राए
जता हता, ने संध्या समये वनमां सामायिकमां बेठेला. त्यां हाथी तेने जोतां ते तरफ
धस्यो, पण तेनुं श्रीवत्स चिह्न जोतां हाथीने पूर्वभवनुं स्मरण थई आव्युं अने शांत
थईने एक विनयवान शिष्यनी जेम मुनिराजना चरण समीप बेसी गयो. ए जोईने
बधाने आश्चर्य थयुं. मुनिराजे अवधिज्ञानथी जाण्युं के आ हाथी ते मरूभूतिनो जीव छे
ने होनहार तीर्थंकर छे; एटले तेने धर्मोपदेश आप्यो. हाथीए सम्यग्दर्शन सहित पांच
अणुव्रत धारण कर्या. एकवार पाणी पीवा जतां तळावमां तेनो पग खूंच्यो, त्यारे सर्प
थयेला कमठना जीवे तेने भयंकर डंश दीधो.
मरूभूति–हाथीनो जीव आराधनाना उत्तम परिणाम सहित मरीने स्वर्गमां
देवपणे उपज्यो. अने कमठ–सर्पनो जीव क्रूर परिणामथी मरीने नरकमां गयो, त्यां
पोताना पापोनुं भयंकर फळ भोगव्युं.
कमठनो जीव नरकमांथी नीकळीने मोटो अजगर थयो.....मरूभूतिनो
(पारसनाथनो) जीव विदेहमां अग्निवेग नामनो राजकुमार थयो, त्यां मुनि थई
ध्यानमां बिराजमान छे; एवामां पूर्व संस्कारथी प्रेरायेलो अजगर त्यां आवी पहोंच्यो
ने ध्यानमां बेठेला ए मुनिराजने गळी गयो.