
वीतरागभावनी प्रेरणा मळे छे, घोर उपद्रव वच्चे पण अडग
आत्मसाधनानो उत्साह जागे छे, क्षमानी उत्तमता ने क्रोधनी हीनता
देखीने तेनो आत्मा क्षमा प्रत्ये उल्लसित थाय छे ने क्रोधादिथी
विरक्त थाय छे. कमठ के जे एक वखत पोतानो सगो भाई हतो
तेणे क्रोधथी पारसनाथना जीव उपर दसदस भव सुधी घोर उपद्रवो
कर्या ने भगवाने क्षमाभावथी ते सहन कर्या. दसदस भव सुधी क्रोध
अने क्षमा वच्चेनी जाणे लडाई चाली, ने अंते क्रोध उपर क्षमानो
विजय थयो. पुराणशास्त्रो आवा हजारो बोधदायक प्रसंगोथी भरेला
छे; जगतमां क्रोध अने क्षमा वच्चे सदाय अथडामण चाल्या ज करे
छे, अज्ञानीओ क्रोधथी उपद्रव करता आवे छे ने ज्ञानी साधको
क्षमाथी सहन करता आवे छे. आराधकने अनेक उपद्रवो आवे छे ने
ते पोतानी आराधनामां अडग रहे छे. पत्थर वरसो के पाणी,
अग्निनी जवाळा हो के सर्पोना फूंफाडा,–ज्ञानी पोतानी आराधनाथी
डगता नथी. दस दस भवथी उपद्रव करता करता अंतिम भवमां
आत्मध्यानमां मग्न पार्श्वमुनिराज उपर कमठना जीवे पत्थर पाणी ने
अग्नि वडे घोरातिघोर उपद्रव करवा छतां ए क्षमावीर
आत्मसाधनाथी न डग्या ते न ज डग्या..... क्रोध एना रूंवाडेय न
फरक्यो.....ए वखते धरणेन्द्र अने पद्मावतीए आवीने भक्तिथी
छत्र धरीने उपद्रव दूर कर्यो,–तो एना उपरना रागना रंगथी पण
भगवान न रंगाया....एमने तो वीतराग थईने सर्वज्ञता साधवी
हती... अंते तेओ सर्वज्ञ थया....ने कमठना जीवनेय पश्चात्ताप
थयो....क्षमा पासे क्रोधनी हार थई....क्षमानो विजय थयो....अनेक
स्थळे पाश्वप्रभुना पंचकल्याणक वखते चित्रोद्वारा पार्श्वप्रभुनुं जीवन
जोतां, अने तेमनी अडग क्षमा अडग साधना तथा क्रोध उपर
क्षमानो विजय देखीने हजारो प्रक्षकोनी सभामां हर्षथी जयजयकार