Atmadharma magazine - Ank 248
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 34 of 55

background image
: जेठ : २४९० आत्मधर्म : २१ :
मुनिराज आराधनापूर्वक स्वर्गमां गया.
अजगर नरकमां गयो.
स्वर्गनी अने नरकनी स्थिति पूरी करीने बंने जीवो पाछा मनुष्यभवे अवतर्या.
पारसनाथनो जीव (–मरूभूति, हाथी ने राजकुमार पछी) विदेहक्षेत्रमां
वज्रनाभी चक्रवर्ती थयो....पछी वैराग्यथी दीक्षा लई मुनिदशामां ध्यानमां छे....त्यां
कमठ, सर्प अने अजगर पछी भील थयेलो कमठनो जीव त्यां आवी पहोंच्यो ने
मुनिराजने जोतां ज तीर मारीने तेमने वींधी नांख्या....अरे, एक वखतना बंने सगा
भाई! जुओ, आ संसारनी स्थिति!
मुनि तो समाधिमरणपूर्वक स्वर्गे सीधाव्या....कमठनो जीव भील पोताना
दुष्कर्मनुं फळ भोगववा घोर नरकमां गयो.
पारसनाथनो जीव स्वर्गमांथी नीकळी अयोध्यानगरीमां आनंदकुमार नामनो
महा–मांडलिक राजा थयो. सफेद वाळ जोतां वैराग्य पामी मुनि थयो, अने उत्तम
परिणामोथी तीर्थंकरप्रकृति बांधी. ए मुनिदशामां ध्यानमां हता, एवामां कमठनो जीव–
के जे नरकमांथी नीकळीने सिंह थयो छे ते आवीने मुनिना देहने खाई गयो.
पारसनाथनो जीव तेरमां आनतस्वर्गनो देव थयो. कमठनो जीव नरकमां गयो.
पारसनाथनो जीव पूर्व दसमा भवे मरूभूति, पछी हाथी, पछी देव, पछी मुनि,
पछी देव, पछी चक्रवर्ती–मुनि, पछी देव, पछी मुनि अने पछी देव थईने अंतिमभवे
गंगाकिनारे काशीनगरीमां तीर्थंकरपणे अवतर्यो.
अने कमठनो जीव पूर्व दसमा भवे मरूभूतिनो भाई कमठ, पछी सर्प, पछी
नारकी, पछी अजगर, पछी नारकी, पछी भील, पछी नारकी, पछी सिंह अने पछी
नारकी थईने हवे पारसनाथना नाना महिपाल तरीके अवतर्यो.
ते महिपाल तापस थईने पंचाग्निमां लाकडा जलावतो हतो. सळगता लाकडानी
पोलमां नाग–नागणी पण हता ने ते पण सळगी रह्या हता. एवामां राजकुमार
पार्श्वनाथ वनविहार करता त्यां आवी पहोंच्या....ने दयाथी प्रेराईने कह्युं: अरे तापस!
आ लाकडानी साथे सर्पयुगल पण भस्म थई रह्युं छे....आवी हिंसामां धर्म न होय.
कुमारनी वात