अर्घदग्ध सर्प–सर्पिणी तरफडिया मारता नीकळ्या....पार्श्वकुमारे दयापूर्वक नमस्कारमंत्र
संभळावीने ते नाग–नागणीनो उद्धार कर्यो; नमस्कारमंत्रना प्रतापे शांतपरिणामथी
मरीने ते बंने धरणेन्द्र तथा पद्मावतीदेवी थया. महिपाल तापस कुतपथी मरीने संवर
नामनो ज्योतिषीदेव थयो.
लईने आवी पहोंच्या. अयोध्यानगरी केवी छे! एम पूछतां दूतना मुखथी अयोध्यानो
अद्भुत महिमा सांभळीने, तथा पोताना जेवा आदिनाथ वगेरे अनेक तीर्थंकरो त्यां
थई गया छे ते सांभळीने पारसकुमार वैराग्य पामे छे....जातिस्मरण ज्ञान थाय छे, ने
दीक्षा लईने मुनि थाय छे.
एम समजी अत्यंत क्रोधित थईने द्रुष्ट परिणामथी अग्नि–पत्थर ने पाणी वगेरेथी घोर
उपद्रव करे छे. ए ज वखते धरणेन्द्र अने पद्मावती (नाग–नागणीना जीव) त्यां
आवी भक्तिपूर्वक सेवा करे छे, ने छत्र धारण करीने उपद्रव दूर करे छे. भगवान तो
ध्यानमां एवा लीन छे के तेमने तो लक्षेय नथी के कोण उपद्रव करे छे ने कोण
भक्ति करे छे! नथी तेमने उपद्रव करनार उपर द्वेष, के नथी भक्ति करनार उपर
राग.–ए तो पोतानी साधनामां मशगूल छे. एक तरफ क्रोधनी पराकाष्ठा छे तो
बीजी तरफ क्षमानी पराकाष्ठा छे. अंते भगवान पारसनाथने केवळज्ञान थाय छे,
कमठनो जीव संवरदेव पश्चात्तापथी प्रभुचरणे नमीने क्षमा मांगे छे, ने भगवान पासे
धर्म पामे छे.
कर्यो. जेम पारसना संगे लोह पण सुवर्ण बने छे, तेम पारसप्रभुना संगथी कमठ जेवो
जीव पण धर्मी पामीने सुवर्ण जेवो बनी गयो. पारसनाथ प्रभुना जीवननी आ खास
विशेषता छे, ते आत्मार्थी जीवने माटे महान आदर्शरूप छे.