Atmadharma magazine - Ank 248
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष: २१ तंत्रीःजगजीवन बावचंद दोशी वीर सं. २४९०
स म्य क त्व
निष्कंप मेरूवत अने निर्मळ ग्रही सम्यक्त्वने
श्रावक! ध्यावो ध्यानमां एने ज दुःखक्षय हेतुए. ८६
सम्यक्त्वने जे ध्यावतो ते जीव सम्यक् द्रष्टि छे,
द्रुष्टाष्टकर्मो क्षय करे सम्यक्त्वना परिणमनथी.
८७
अधिक शुं कहेवुं अरे! सिध्या अने जे सिद्धशे,
वळी सिद्धता–सौ नरवरो, महिमा बधो सम्यक्त्वनो.
८८
सम्यक्त्व–सिद्धिकर अहो, स्वप्नेय नहि दुषित छे,
ते धन्य छे सुकृतार्थ छे,
शूर वीर ने पंडित छे. ८९
(–भगवत् कुंदकुंदस्वामी)

त्रणकाळ ने त्रणलोकमां समकित सम नहि श्रेय छे,
मिथ्यात्व सम अश्रेय को नहि जगतमां आ जीवने. ३४
(–श्री समन्तभद्र स्वामी)