ः ३२ः अषाढः २४९०
अभिनंदन ग्रंथ
अभिनंदनग्रंथनी समालोचना करतां “जैनमित्र” लखे छे
के–‘सारांश कि यह अभिनंदनग्रंथ सारे जैन समाजमें अजोड है.
श्री कानजीस्वामीने दक्षिण–उत्तरकी यात्रायें बडे संघसहित की थी,
उनका खुद देखा हुआ सचित्र परिचय अतीव पढने योग्य है!
आप के उपदेशसे बने २०–२२ मंदिरों के द्रश्य व मूर्तियोंंके चित्र
भी दिये गये है...
“श्री कानजीस्वामी के प्रवचन समयसार, प्रवचनसार,
नियमसार, पद्मनंदीपच्चीसी, धवलग्रंथ जयधवलग्रंथ,
समाधिशतक, परमार्थवचनिका, द्वादशानुप्रेक्षा, नाटक समयसार,
आत्मानुशासन, स्वयंभूस्तोत्र, द्रव्यसंग्रह, भरतेशवैभव, सुद्रष्टि
तरंगिणी, पंचास्तिकाय, अनुभवप्रकाश, नियमसार, गोमट्टसार,
तत्त्वार्थ आदि ग्रंथराजों पर किये गये प्रवचनोंका सार दिया गया
है, तथा ७प वर्षके ७प सन्देश भी दिये गये है. हम तो कहते है कि
अभिनन्दन–ग्रंथ जैन समाजमें कई प्रगट हुए है लेकिन यह
अभिनंदन–ग्रंथ अनेक प्रकारसे एक उत्तम प्रकाशन है–जो प्रत्येक
जैन–अजैन बंधुको पढने मनन करने व संग्रह करने योग्य है.”
(जैनमित्र” मांथी साभार.)
आ ग्रंथ मुंबई तेमज सोनगढथी मळशे. किं. रूा. ६/–
पोस्टेज रूा. र–७प प्लास्टिकना पूंठा सहित रूा. १/– वधु
सूचनाः– जेमणे मुंबईमां अगाउथी रूा. ६/– भर्या होय
तेमणे पोतानुं पुस्तक मुंबई अगर सोनगढथी मेळवी लेवुं. अने
जो पोस्टथी मंगाववा इच्छा होय तो, रूा. भर्या छे तेनी सूचना
साथे पूरुं सरनामुं अने पोस्टेज खर्चना रूा. २–७प मोकलवा.)
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर श्री दि. जैन मुमुक्षु मंडळ
सोनगढ–सौराष्ट्र १७३–१७प मुम्बादेवी रोड मुंबई–२