सुपुत्र रतिलालभाईना मकानना वास्तु प्रसंगे पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी.
साचो कार्यकर्ता ते छे के जेणे स्वानुभववडे सम्यग्दर्शनरूप कार्य कर्युं.
आत्मा छे ते ज सौथी इष्ट पदार्थं छे, तेने बीजो कोइ पर पदार्थ नथी तो इष्ट के
नथी अनीष्ट; एटले क्यांय राग द्वेष करवानुं तेना स्वरूपमां नथी. शरीर तो जड
छे, ने अंदर पापनी के पुण्यथी जे वृत्ति ऊठे छे तेनाथी पण भगवान आत्मा पार
छे; ते पोते आनंदरसथी भरेलो छे, शुद्धनय वडे आवी निर्विकल्प वस्तुनो
अनुभव थाय छे. ए शुद्धनय पोते पण निर्विकल्प छे. आवा शुद्धनयवडे भगवान
आत्माने देखतां अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन आवे ते धर्म छे, ने ते सम्यग्दर्शननी
रीत छे. आवा आत्मानो अनुभव तो बहु आगळनी वात छे, ते पहेलां
सत्समागमे तेनो परिचय करीने आ वात लक्षमां लेवी जोइए. शुद्धनयनुं यथार्थ
लक्ष पण जीवे कदी कर्युं नथी. भगवान कुंदकुंदाचार्य विदेहक्षेत्रमां जइ साक्षात्
सीमंधर परमात्मा पासेथी दिव्यध्वनिमां जे सांभळी आव्या ने अंतरमां जे
अनुभव्युं ते आ समयसारमां बताव्युं छे. तेमां कहे छे के अरे जीव!
शुद्धचैतन्यस्वरूप आ आत्मा परथी भिन्न छे–एवी वात रुचिथी–प्रीतिथी तें कदी
सांभळी नथी, परिचयमां लीधी नथी के अनुभवमां लीधी नथी. ते वात हुं तने
समस्त निजवैभवथी बतावुं छुं; तो तुं पण तारा निजवैभवथी ते अनुभवमां
लेजे. जुओ, आ निजवैभव देखाडीने आचार्यदेव स्वघरमां वास्तु करावे छे.