Atmadharma magazine - Ank 250
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 30 of 37

background image
श्रावणः २४९०ः २७ः
आ चैतन्यप्रभु आत्मा चैतन्यलक्षण सहित बिराजमान छे. आ
चेतनालक्षणमां कर्मचेतना नथी, हर्ष शोकरूप कर्मफळचेतना पण तेमां नथी.
चेतनालक्षण तो रागथी पार ने हर्षशोकथी पार छे. जे चेतना आत्माने चेते–जाणे
ते ज खरी चेतना छे. अज्ञानभावे अनादिथी अशुद्ध वेदन करी रह्यो छे तेने बदले
‘हुं ज्ञाता छुं.’ एवी अंर्तद्रष्टि वडे शुद्धतानुं ने शांतिनुं वेदन पण पोते करी शके
छे. आ चैतन्यना स्वादनुं वर्णन वाणीमां आवी शके नहि. जडना स्वादथी तो जुदो
ने रागना स्वादथी पण पार एवो जे शांत–अनाकुळस्वाद, तेनो पिंड आत्मा छे.
आ भाषामां के रेकोर्डिंगनी पट्टीमां शब्दो ऊतरे छे. कांई अरूपी आत्मा एमां नथी
ऊतरतो. अरूपी आत्मा ज्यां रागना वेदनमांय नथी आवतो, त्यां जड वाणीमां
तो ते क्यांथी आवे? सम्यग्दर्शनना प्रथम दरज्जे एटले के धर्मनी शरूआतना काळे
प्रथम आवो आत्मस्वाद आवे छे. एना महिमानी अपारता छे. जिनवाणीमाता
एनां गुणगानना हालरडां गाय छे...जेम लौकिकमां माता हालरडां वडे बाळकनां
वखाण संभळावीने तेने सुवडावे छे...केमके पोताना वखाण गोठे छे एटले ते
सांभळतां सूई जाय छे. तेम जिज्ञासुने आत्माना निजगुणनी प्रीति छे. भगवान
तीर्थंकरदेव अने तेमना प्रतिनिधी संतमुनिवरो जिनवाणीरूपी हालरडा वडे
गुणगान करीने आत्माने जगाडे छेः अरे जीव! तारो आ अचिंत्य महिमा देख!
आवा आत्माने द्रष्टिमां लइने पछी अंतरमां लीनताथी अतीन्द्रिय आनंदना झुले
झूले तेनुं नाम चारित्रदशा अने मुनिपणुं छे. आवो आत्मा जेणे द्रष्टिमां लीधो ते
पूर्णानंदना पंथे चडयो, ते मोक्षना पंथे वळ्‌यो. अहा, चैतन्यना अनुभव पासे
इंद्रना इन्द्रासन पण तूच्छ लागे छे. चक्रवर्तीना वैभव पण तरणां जेवा लागे छे.
अरे, चैतन्यना अनुभवने कोनी उपमा अपाय? एनी उपमा आपी शकाय एवो
कोइ पदार्थ जगतमां नथी. ज्यां आवो आत्मा स्वादमां आव्यो ने सम्यग्दर्शन थयुं
त्यां धर्मीजीव निजकार्यनो कर्ता थयो, ते ज धर्मनो खरो कार्यकर्ता छे. बहारनां कार्य
तो कोण करे छे? मोक्षार्थीनी कार्यसिद्धि तो चैतन्यना अनुभवरूप सम्यग्दर्शनथी ज
थाय छे. माटे साचो कार्यकर्ता ते छे के जेणे स्वानुभव वडे सम्यग्दर्शनरूप कार्य कर्युं.
सुखिया ते मुनिराया
सुखीया ते मुनिराया उपशम सार भजे रे...
परपरिणति परिणाम कारण जेह तजे रे...
उपशमरस तब होय निज शुद्ध ध्यान सजे रे...
मिथ्यातविषयनो त्याग, जिनवच अमीय सिंचे रे...