Atmadharma magazine - Ank 250
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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ः २८ः श्रावणः २४९०
विविध वचनामृत
[२]
आ विभाग आत्मधर्मना गतांकथी चालु थयेल छे; आ बीजो लेख छे.
वचनामृत नं १ थी ८४ पहेला लेखमां आपेल छे, त्यार पछी आगळ वधे छे.
(८प) धर्मनो महिमा
आत्मस्वरूपने साधनारा अने दर्शावनारा आत्मज्ञ संतोनुं माहात्मय आव्या
वगर आत्मस्वरूपने पामी शकाय एम कदी बनी शकतुं नथी.
(८६) धर्मात्मानी प्रसन्नता
अहो, जे भव्य महात्माना संबंधमां श्री ज्ञानीओना मुखेथी एम मंगळवचन
नीकळ्‌यां के ‘तारुं हित थई गयुं छे, तुं जरूर मुक्ति पामीश’– आ जीवने अल्पकाळमां
केवळज्ञाननो पावर फाटशे.–तो एवा ते मोक्षगामी जीवना महिमानी शी वात? अहो,
मोक्षना आशीर्वाद मळ्‌यां ए करतां बीजो क्यो मोटो महोत्सव होय? ज्ञानीओए तेनी
पात्रता जोइने तेने मोक्ष माटेनी युवराज पदवी आपी दीधी; एवा ते महा भाग्यवंत
मोक्षनंदनने धन्य छे, धन्य छे. एक तीर्थंकर पूर्वभवमां ज्यारे राजा हता अने श्री ज्ञानी
मुखेथी सांभळ्‌युं के पोते भविष्यमां तीर्थंकर थवाना छे. बस, पछी तो ए महात्माना
उल्लासनुं पूछवुं ज शुं? त्यारे ने त्यारे पोताना राज्यमां पोताना भावि
पंचकल्याणकनो महान उत्सव कराव्यो अने भविष्यनी मुक्तिनो आनंद वर्तमानमां ज
माणी लीधो. तेम पोतानो मोक्ष थवानी वात ज्ञानी पासेथी सांभळतां मुमुक्षु जीवना
हृदयमां मोटो उल्लास जागे छे अने ते नाची ऊठे छे, पोतानी भावी मुक्तिनो आनंद
वर्तमानमां माणे छे, धन्य तेनो सत् उल्लास! भरत चक्रवर्तीए ज्यारे मुनिओने
आहारदान कराव्युं अने त्यार पछी ज्यारे बे मुनिवरोए भरतने आशीर्वाद आप्या केः
अक्षयं दानफलम् अस्तु ते” अने “निर्मलात्मसिद्धिरस्तु ते” एटले के तने अक्षय
दानफळनी (मोक्षनी) प्राप्ति थाओ,–अने तने निर्मल आत्मसिद्धिनी प्राप्ति थाओ.–
त्यारे ए बे महा समर्थ मुनिओना मोक्ष माटेना आशीर्वाद सांभळतां ज भरत
चक्रवर्तीए हर्षोल्लासथी नृत्य करवा मांडयुं, तेनो आत्मा उल्लासथी नाची ऊठयो. केम
न नाचे?–आंगणे मोक्षना अवसर आव्या!
(८७) जन्मरहित थवा माटे जे जन्म थयो ते जन्म सफळ छे
जे जीवननी एकेक पळ आत्मार्थ खातर ज वीतती होय, जेनी एकेक पळ संसारने