प्राप्त थयुं..पछी एनां निधान देखीने गुरुदेवने प्रसन्नता थइ ने तेना रचयिता प्रत्ये
घणी भक्ति जागी. तेमांय ज्यारे एक पुस्तकमां कुंदकुंदप्रभुना विदेहगमन संबंधी
उल्लेख वांच्यो त्यारे तेमना अंतरमां ऊंडेथी अव्यक्त संस्कारपूर्वक तेनो सहर्ष
स्वीकार आव्यो. पछी अंदरना मंथनपूर्वक ए शास्त्रनो वधु ने वधु ऊंडो अभ्यास
करता गया...तेना उपर प्रवचनो पण करवा लाग्या...भाईश्री हिंमतलाल जे. शाह
द्वारा तेनुं गुजराती भाषांतर थइने अनेक आवृत्तिओ छपाइ गइ, हिन्दीमां पण
अनेक आवृत्तिओ छपाणी. तेनी मूळ गाथाओना गुजराती–गीतनी अवारनवार
सामूहिक स्वाध्याय थाय छे,–गुरुदेवना प्रवचनमां समयसार लगभग कायम
वंचातुं होवाथी सोनगढमां घरेघरे व्यक्तिदीठ समयसार विराजी रह्युं छे, सोनगढनुं
एकपण घर समयसार विनानुं खाली नहि होय. समयसारने सोनेरी पूंठाथी
मढवामां आव्युं छे, चांदीना पतरामां तेनी मूळ गाथाओ कोतरवामां आवी छे, ने
स्वाध्यायमंदिरमां बहु मानपूर्वक पूज्य बेनश्री चंपाबहेनना सुहस्ते तेनी स्थापना
करवामां आवी छे. हालमां समयसार उपर गुरुदेवना प्रवचनो १४ मी वखत
चाली रह्या छे...गुरुदेवना समयसार उपरनां प्रवचनोमांथी पांच पुस्तको छपाइ
गया छे,–जेमांना छेल्ला त्रण पुस्तकोनुं भाववाही लखाण पू. बेनश्रीबेन
(चंपाबेन–शांताबेन) ना सुहस्ते लखायेलुं छे. आवा आ समयसार उपरना
प्रवचनोनो थोडोक नमूनो अहीं आप्यो छे. समयसार वांचती वखते गुरुदेवनुं
हृदय केवुं खीली ऊठे छे ते आमां देखाइ आवशे.