Atmadharma magazine - Ank 250
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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ः २ः श्रावणः २४९०
स...म...य...सा...र
“समयसार”–जैनशासननुं सर्वोतम परमागम.. जेवुं सुंदर एनुं नाम
एवो ज एनो विषय. आवुं समयसारशास्त्र पू. गुरुदेवने प्रथम सं. १९७८ मां
प्राप्त थयुं..पछी एनां निधान देखीने गुरुदेवने प्रसन्नता थइ ने तेना रचयिता प्रत्ये
घणी भक्ति जागी. तेमांय ज्यारे एक पुस्तकमां कुंदकुंदप्रभुना विदेहगमन संबंधी
उल्लेख वांच्यो त्यारे तेमना अंतरमां ऊंडेथी अव्यक्त संस्कारपूर्वक तेनो सहर्ष
स्वीकार आव्यो. पछी अंदरना मंथनपूर्वक ए शास्त्रनो वधु ने वधु ऊंडो अभ्यास
करता गया...तेना उपर प्रवचनो पण करवा लाग्या...भाईश्री हिंमतलाल जे. शाह
द्वारा तेनुं गुजराती भाषांतर थइने अनेक आवृत्तिओ छपाइ गइ, हिन्दीमां पण
अनेक आवृत्तिओ छपाणी. तेनी मूळ गाथाओना गुजराती–गीतनी अवारनवार
सामूहिक स्वाध्याय थाय छे,–गुरुदेवना प्रवचनमां समयसार लगभग कायम
वंचातुं होवाथी सोनगढमां घरेघरे व्यक्तिदीठ समयसार विराजी रह्युं छे, सोनगढनुं
एकपण घर समयसार विनानुं खाली नहि होय. समयसारने सोनेरी पूंठाथी
मढवामां आव्युं छे, चांदीना पतरामां तेनी मूळ गाथाओ कोतरवामां आवी छे, ने
स्वाध्यायमंदिरमां बहु मानपूर्वक पूज्य बेनश्री चंपाबहेनना सुहस्ते तेनी स्थापना
करवामां आवी छे. हालमां समयसार उपर गुरुदेवना प्रवचनो १४ मी वखत
चाली रह्या छे...गुरुदेवना समयसार उपरनां प्रवचनोमांथी पांच पुस्तको छपाइ
गया छे,–जेमांना छेल्ला त्रण पुस्तकोनुं भाववाही लखाण पू. बेनश्रीबेन
(चंपाबेन–शांताबेन) ना सुहस्ते लखायेलुं छे. आवा आ समयसार उपरना
प्रवचनोनो थोडोक नमूनो अहीं आप्यो छे. समयसार वांचती वखते गुरुदेवनुं
हृदय केवुं खीली ऊठे छे ते आमां देखाइ आवशे.
ज्यारे ज्यारे समयसारनी शरूआत थती होय त्यारे त्यारे पहेली गाथामां
मंगलाचरणमां सिद्धपणानी स्थापनानी वात गुरुदेव जे अचिंत्य प्रमोदथी करे छे ते
सांभळतां सिद्धभगवानना साक्षात्कार जेवा प्रमोदथी श्रोताजनोनो आत्मा उल्लसी
जाय छे. “हुं सिद्ध...तुं सिद्ध”–एम आत्मामां सिद्धपणुं स्थापीने आचार्यदेव आ
‘समयसार’ संभळावे छे...हा पाड...ने हाल्यो आव सिद्धपदमां!
नमः समयसाराय’ ए मंगळमां गुरुदेव कहे छे के आ अप्रतिहत मांगलिक
छे...समयसार एटले के शुद्धआत्मा तेने अमे नमीए छीए, एटले समस्त संसार अने
संसार तरफ वलणना भावथी हवे अमे संकोचाईए छीए, अने चिदानंद–ध्रुवस्वभावी
एवा समयसारमां समाइ जवा मागीए छीए. बाह्य के अंतर संयोग स्वप्ने पण
जोइतो नथी. बहारना भाव अनंतकाळ कर्या...हवे अमारुं परिणमन अंदर ढळे छे.
अप्रतिहत भावे अंतरस्वरूपमां ढळ्‌या ते ढळ्‌या...हवे अमारी शुद्ध परिणतिने रोकवा
जगतमां कोइ समर्थ नथी.