Atmadharma magazine - Ank 250
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 6 of 37

background image
श्रावणः २४९०ः ३ः
अहो, समयप्राभृतनी शरूआत करतां सर्वे सिद्धभगवंतोने आत्मामां
ऊतारीने आचार्यदेव अपूर्व मंगलाचरण करे छे. आत्मामां साधकस्वभावनी
शरूआत थाय ते अपूर्व मंगळ छे. आत्मानुं परमध्येय एवुं जे सिद्धपद तेने
साधवानो जे भाव प्रगटयो एटले सिद्धसन्मुख जवानुं शरू कर्युं–ते ज मांगलिक
छे. अत्यार सुधी अनंता सिद्धभगवंतो थया ते सर्वने भावस्तुति तथा द्रव्यस्तुति
वडे पोताना आत्मामां तथा परना आत्मामां स्थापीने आ समयसार शरू करुं छुं.
भावस्तुति एटले अंतर्मुख निर्विकल्प शांतरसनुं परिणमन अने द्रव्यस्तुति एटले
सिद्धोना बहुमाननो विकल्प तथा वाणी; एम बंने प्रकारे स्तुति करीने, मारा तेम
ज श्रोताजनोना आत्मामां अनंता सिद्धभगवंतोने स्थापुं छुं. आत्मा केवडो? के
अनंता सिद्धोने पोतामां समावी दे तेवडो. आत्मामां ज्यां सिद्धोने स्थाप्या त्यां
हवे तेमां राग रही शके नहि. ज्यां सिद्धोनो आदर कर्यो त्यां रागनो आदर रहे
नहि; एटले सिद्धने पोतामां स्थापतां ज राग साथेनी एकत्वबुद्धि तूटी गइ, ने
साधकदशा शरू थइ, ते ज अपूर्व मंगळ छे; पंचमकाळनो साधक पोताना सिद्धपद
माटे प्रस्थानुं मूके छेः हे सिद्धभगवंतो! सिद्धपदने साधवा हुं उपडयो छुं त्यां
शरूआतमां ज मारा आत्मामां आपने स्थापुं छुं अने हे श्रोताजनो! तमारा
आत्मामां पण सिद्धपणुं स्थापुं छुं. होंसथी हा पाडजो! ना न पाडशो. अमारो
श्रोता एवो ज होय के जे पोताना आत्मामां सिद्धपणुं स्थापीने सांभळे छे.
एकला रागमां ऊभो रहीने नथी सांभळतो, पण पहेले घडाके सिद्धपदना भणकार
लेतो आवे छे. “हुं सिद्ध...तुं सिद्ध!”–एम श्रवण करतां ज आत्मा अंदरथी हकार
करतो आवे छे.
आ समयसार भरतक्षेत्रनुं अलौकिक अमृतरसथी भरेलुं शास्त्र छे. मांगळिकमां
ज सिद्धपद स्थापीने साधकपणानी अपूर्व शरूआत करावे छे.
अहा! चैतन्य साथे संबंध जोडतां निर्मळ साधकभावनी संतति शरू थाय छे.
सिद्धपदना पूर्ण ध्येये साधक ऊपडयो. हे सिद्धभगवंतो! हवे हुं आपनी नातमां आवुं
छुं; संसारथी–रागथी जुदो पडीने सिद्धनी–शुद्धात्मानी नातमां भळुं छुं.
जुओ तो खरा, आ कुंदकुंदस्वामीनी रचना! अहा, भरतक्षेत्रमां जन्मीने
देहसहित जेमणे विदेह क्षेत्रना तीर्थंकरना साक्षात् दर्शन कर्या तेमनी पात्रता अने
पुण्यनी शी वात!! तेओ कहे छे के केवळी अने श्रुतकेवळी भगवंतोए कहेला आ
समयप्राभृतने हुं मारा अने परना मोहना नाशने माटे कहीश. सिद्धसमान आत्माने
ध्येयरूपे राखीने आ शरू कर्युं छे, माटे ते ध्येयने चूकशो नहीं. आ समयसार समजे
तेना मोहनो नाश थई जशे–एम आचार्यदेवना कोलकरार छे.