ः ६ः श्रावणः २४९०
*स्वभावने ज अधिकरण बनावीने परनो आश्रय छोड.
*स्वभावनो ज स्वामी थईने तेनी साथे एकतानो संबंध कर ने परनी साथेनो
संबंध छोड.
–आम समस्त परथी विभक्त ने निजस्वभावथी संयुक्त एवा पोताना
आतमरामने जाणीने तेना अनुभवथी तुं आनंदित था...तुं प्रसन्न था.
वनजंगलमां वसता ने आत्माना आनंदना स्वादमां झूलता वीतरागी दिगंबर
संत पोताना स्वानुभवने प्रसिद्ध करे छे के अहो! चैतन्यनी सन्मुखताथी अनुभवातुं
आ अतीन्द्रियसुख कोइ विकल्पमां न हतुं, कोइ बाह्य पदार्थोमां आ सुखनी गंध पण न
हती, अनंतकाळना शुभाशुभ विकल्पोमां कदी आवुं सुख अनुभवायुं न हतुं. चैतन्यनुं
जेने लक्ष पण नथी तेने सुख शुं अने दुःख शुं तेनी पण खबर नथी, तो पछी दुःख
टाळवानो अने सुख पामवानो साचो उपाय तो तेने क्यांथी होय?
अरे जीव! आवो अवतार पामीने जो भवभ्रमणना दुःखथी छूटवानी कळा तने
न आवडी तो तें आ अवतार पामीने शुं कर्युं? सुखनो उपाय एटले के भेदज्ञाननी
कळा जाण्या वगर बीजुं जे कंई करे ते बधुं रणमां पोकनी जेम फोगट छे. जे भेदज्ञान
करे तेने अंतरमांथी भवअंतना भणकार आवी जाय ने सिद्धपदना सन्देश आवी
जाय...के हवे भवनो नाश करीने सिद्धपद अल्पकाळमां पामशुं.
–अहीं समयसार उपरनां प्रवचनोनी थोडीक ज प्रसादी आपी छे, बाकी तो
गुरुदेवना प्रवचनमां वहेतो धोधमार अध्यात्मप्रवाह सीधो झीलीए त्यारे ज
समयसारना महिमानो खरो ख्याल आवे. खरेखर, समयसार ए गुरुदेवना साथीदार
छे. प्रवचनमां एकवार गुरुदेवे कहेलुं के आ समयसारमां घणां ऊंडां–गंभीर भावो
भर्या छे, जीवनना छेल्ला श्वासोश्वास सुधी तेनी स्वाध्याय अने मंथन करवा जेवुं छे.
ग्रंथाधिराज समयसारनो जय हो.
[आवा आवा बीजा प० जेटला उत्तम शास्त्रोनो परिचय मेळववो होय तो
‘अभिनंदन ग्रंथ’ नो प्रवचन–विभाग जुओ.] प्राप्तिस्थानः जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट
सोनगढ. (सौराष्ट्र) मूल्य रूा. ६–०० पोस्टेज पहेला ग्रंथना रूा. २–७प. पछी दरेक
ग्रंथ दीठ रूा. २–२प (प्लास्टीकना पूंठा सहित एक रूा. वधु.)