Atmadharma magazine - Ank 251
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : आत्मधर्म : १ :
* आ रा ध ना नुं महान पर्व *
प.य.ष.ण
समस्त शक्तिथी धर्मनी उपासनाना प्रतीकरूप महापर्व एटले
पर्युषण. धर्मनी आराधनानी जागृती आपतुं आ पवित्र पर्व अनादि
अकृत्रिम छे. दीपावलीपर्व, अक्षयत्रीज वगेरे पर्वो तो कोई महापुरुषना
जीवनप्रसंगो निमित्ते शरू थयेला छे,–अने नंदीश्वर अष्टाह्निका तथा
दसलक्षणीपर्युषण जेवा पर्वो अनादि अकृत्रिम छे–तेमां अष्टाह्निकापर्व ए
जिनभक्तिप्रधान छे, त्यारे पर्युषणपर्व ते आराधनाप्रधान छे. आ
दिवसोमां जैनमात्रमां अनोखी जागृति आवी जाय छे. आवुं आ
जागृतपर्व अत्यारे चाली रह्युं छे. ते प्रसंगे उत्तम–क्षमा, मार्दव, आर्जव,
शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य अने ब्रह्मचर्य–ए
वीतरागीधर्मोनुं स्वरूप ओळखीने, तेनी उत्तम आराधनानी भावना ए
आपणुं कर्तव्य छे.
श्री पद्मनंदीस्वामी कहे छे के त्रणलोकना स्वामी ईन्द्रोथी पण जे
वंदनीक छे एवा आ उत्तम दशधर्मोनुं स्वरूप सांभळीने, ते धारण
करवानो कोने उत्साह नहि थाय? कोण तेने हर्षथी धारण नहि करे?
बधाय मोक्षार्थी जीवो आ उत्तमधर्मोनुं स्वरूप सांभळतां आनंदित थशे ने
हर्षथी तेनुं पालन करशे. आ दशधर्मोनी उत्तम आराधना मुनिदशामां
होय छे. मुनिदशा ते मोक्षमहेलनी सीडी छे; तेनी एक तरफ तो वैराग्य
अने बीजी तरफ त्याग–एम बे बाजु बे सुंदर मजबुत कठोडा लागेला
छे, अने दशधर्मरूपी दश विशाल पगथिया छे. मोक्षमहेलमां चढवानी
भावनावाळा पुरुषोए आवी सीढी चढवा योग्य छे. अर्थात् सम्यग्दर्शन–
ज्ञानपूर्वक जे जीव आवा उत्तमक्षमादिभावरूप धर्मोने वैराग्यथी आराधे
छे ते जीव मुक्ति पामे छे. अहो, मोक्षार्थी जीवने आवा दशधर्मोनी
आराधना प्रत्ये उत्साह जागे छे. धन्य ते उत्तमक्षमावंत मुनिवरो, के
जेओने