Atmadharma magazine - Ank 252
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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वर्षः २१वीर सं.
अंकः १२र४९०
२प२
तंत्री
जगजीवन बावचंद दोशी
आसो
बे वात
तारी कमाणीना भागीदार
भाई, जे कमाणी माटे तुं दिनरात पापभावमां डुब्यो रहे छे, तारी ए कमाणीमां
तो तारा कुटुंबना आठदस माणसो भाग पडावशे, ने सरकार पण भाग पडावशे. परंतु
तेमां तने पापनीः जे कमाणी थशे ते तो तारा एकलाना भागे ज आवशे, तारी
पापकमाणीमां कोइ भागीदार नहि थाय. माटे पापथी भयभीत थइ तारुं चित्त
धर्मकार्यमां जोडः ने धर्मनी एवी कमाणी कर के जेना फळमां सादि–अनंत सुखनो
भोगवटो तने एकलाने मळे.
(चर्चामांथी)
धर्मनी पहेली प्रतिज्ञा
हे जीव! धर्म साधवा माटे पहेली प्रतिज्ञा ए कर के मारा ज्ञानमां हुं परनुं कर्तृत्व नहीं
स्वीकारुं; तेमज शुभ–अशुभ परभाव ते मारा स्वभावनी चीज नथी. आ रीते पर
द्रव्यनुं कर्तृत्व के परभावो मने मारा ज्ञानस्वभावमां न खपे–एम पहेलां प्रतिज्ञा कर,
प्रतीति कर, सम्यक् द्रढता कर. आवी सम्यक् प्रतीतिरूप प्रतिज्ञा ते धर्म साधवानुं मूळ
छे. जे आवी प्रतिज्ञा करशे ते ज परभावने छोडी स्वभावधर्मनी प्राप्ति करशे.
(प्रवचनमांथी)