आशानो खाडो केम पूराय?
आत्मा अनंत चैतन्यसमृद्धिथी भरेलो छे; परंतु पोतानी अनंत आत्मसमृद्धिने
भूलेलो जीव ज्यारे बाह्य विषयोनी तृष्णा करे छे त्यारे ते तृष्णा पण अनंत होय छे.
एनी तृष्णानो अनंतो खाडो गमे तेटला बाह्यविषयोथी पूरातो नथी, मात्र
स्वानुभवना अमृतपान वडे ज ते पूराय छे. वैराग्यप्रधान आत्मानुशासन ग्रंथमां
गुणभद्रस्वामी कहे छे के
आशागर्तः प्रतिप्राणि यस्मिन् विश्वमणूपमम्।
तत्कियत कियदायाति वृथा वै विषयैषिता।।
आ संसारमां प्रत्येक प्राणीना अंतरमां आशारूपी खाडो एटलो ऊंडो छे के तेनी
पासे आ आखुंय विश्वपण मात्र अणु समान छे. आ परिस्थितिमां जो जीवो वच्चे
विश्वनी वहेंचणी करवामां आवे तो दरेक जीवना भागमां केटलुं–केटलुं आवे? आशा तो
अनंती छे ने विषयो तो थोडा ज छे; माटे विषयोनी आशा व्यर्थ छे.
हे आत्मन्! तुं अनादिअनंत
पूर्णस्वभावथी भरेलो छे...वर्तमान क्षणिकवृत्ति
जेटलो ज तुं नथी, माटे क्षणिकवृत्तिने वश न
था...सहज स्वभावने स्मरीने क्षणिक वृत्तिना
आवेगने तोड. सहज स्वभावनी भावनामां रत
थतां तारा परिणाम उपशांत थशे...ने वृत्तिनुं वहन
अंतरमां जशे.
हे जीव! जगतनी जंजाळमां तुं तारा
आत्माने न भूल. कषायोने वश थइने तुं तारी
आत्म–शांतिने न खो. परभावोना अभ्यासमां
अत्यार सुधीनो वखत गुमाव्यो...हवे
प्रसन्नतापूर्वक स्वद्रव्यना अभ्यासमां तत्पर था.
तारा हाथमां ज तारुं हित छे.