Atmadharma magazine - Ank 252
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 4 of 29

background image
सम्यग्ज्ञान सर्व प्रयोजननी सिद्धिनुं कारण होवाथी मंगळरूप छे.
लोकमां सर्वजनप्रसिद्ध छे के यथार्थ ज्ञानथी सर्व सिद्धि छे. प्रथम तो दर्शननी
विशुद्धिपूर्वक भगवान अर्हंतदेव प्रत्ये परमभक्ति होय; आवा सम्यक्त्व सहित होय ने
जिनभक्ति सहित होय तेवा ज्ञानने ज खरेखर ज्ञान कहेवाय छे. अहा, जेमनां
वचनथी सम्यक्त्वनी प्राप्ति थाय छे तेमना प्रत्ये जो परमभक्ति न उल्लसे तो त्यां
सम्यक्त्वनी आराधना क्यांथी होय? जेना वचनथी सम्यक्त्व थाय छे एवा देव–गुरु
प्रत्ये परमभक्ति होय छे, एवी भक्ति वगरनुं ज्ञान ते ज्ञान नथी पण अज्ञान ज छे.
वळी चैतन्यनुं भान थतां अतीन्द्रिय आनंदना स्वाद पासे जगतना विषयोनो स्वाद
तूच्छ लागे छे, एटले सहेजे विषयोथी विरक्ति थई जाय छे. जो चेतन्यरसनी
परमप्रीति अने विषयोथी विरक्ति न थाय तो तेणे जाण्युं शुं? –तेणे संसार अने
मोक्षना कारणने कई रीते जाण्या? विषयो तो संसारनुं कारण छे, ने विषयोथी विरक्ति
करीने चैतन्यसन्मुख प्रवृत्ति ते मोक्षनुं कारण छे. जे जीव संसार–मोक्षना कारणने
ओळखे छे तेने चैतन्यना आनंदना अनुभवनी प्रीति छे, ने विषयोमां आकुळतानुं
वेदन छे तेनाथी ते विरक्त थाय छे. अहा, चैतन्यनो परम शांतरस जेणे चाख्यो तेने
आकुळताजनक विषयोनो रस केम रहे? आ रीते सम्यग्दर्शन थतां ज चैतन्यनो रसीलो
थइने जगतना विषयोथी विरक्त थाय छे, तेथी सम्यक्त्व पण महान शील छे. आवा
सम्यक्त्वरूपी शीलसहित होय ते ज्ञान ज सम्यग्ज्ञान छे; ज्ञाननी ने शास्त्रने जाणवानी
महत्ता तो सम्यक्त्वथी ज छे. सम्यग्दर्शन वगरना ज्ञाननी के शास्त्रना जाणपणानी
कांई बडाइ नथी. अहा, सम्यक्त्व सहित अने विषयोथी विरक्त एवुं जे सम्यग्ज्ञान ते
सर्व प्रयोजनथी सिद्धिनुं कारण छे तेथी ते महान महिमावंत छे; आ रीते सम्यक्त्व
सहितना ज्ञाननो जे महिमा कर्यो ते ज मंगळ छे.