Atmadharma magazine - Ank 252
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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ः २ः आसोः २४९०
ज्ञा न
[समयसार सर्वविशुद्धज्ञान अधिकारना प्रवचनोमांथी (१) ]
‘हुं ज्ञान छुं, परनुं कर्तृव्य मारामां नथी’
आवा अकर्ताभाव वडे ज्ञानी संतोए समस्त
परद्रव्यो प्रत्येथी पोतानी परिणतिने समेटी लीधी छे
ने परिणतिने निजज्ञानमां जोडी छे. अहा, अनंता
पदार्थना कर्तृत्वनो भार माथेथी उतारी नाख्यो.
केटलो हळवो!!
भाई, जीवनमां आवा ज्ञानना संस्कार रेड तो
ते तने शरणरूप थशे, बीजुं कोई शरण नहि थाय.
भिन्न ज्ञाननी भावना जीवनमां घूंटी हशे तो देहथी
भिन्न थवाना अवसरे ज्ञानमां भींस नहि पडे; हुं तो
ज्ञान छुं एवा पडकार करतो आत्मा ज्ञानना ऊंडा
संस्कार परभवमांये साथे लइ जशे. जेणे पहेलेथी
भावना घूंटी हशे तेने ज खरे टाणे तेनुं फळ आवशे.
ज्ञानी जाणे छे के मारुं कार्य परमां नथी, परना कार्यमां हुं नथी; परनुं कार्य
मारामां नथी, ने मारा कार्यमां पर नथी. हुं परने जाणुं ने परज्ञेयो ज्ञानमां
जणाय–तोपण मारामां परनो प्रवेश नथी ने परमां मारो प्रवेश नथी. सर्वे द्रव्यो
बीजा द्रव्योनी बहार ज लोटे छे. कोई द्रव्य बीजा द्रव्यमां प्रवेशतुं नथी. भाई, तारा
ज्ञानमां परनो प्रवेश ज नथी त्यां पर तने शुं करे? जेमां परनो कदी प्रवेश ज नथी
एवुं तारुं स्वरूप तेनो निश्चय करीने निजस्वरूपमां ज तुं रहे. जगतना पदार्थो
बधाय स्वयं पोतपोताना स्वरूपमां रहीने परिणमी रह्या छे. पोताना स्वरूपथी
बहार कोईपण पदार्थ परिणमतो