Atmadharma magazine - Ank 252
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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आसोः २४९०ः ३ः
नथी. परमाणु परमाणुना स्वरूपमां परिणमे छे, सिद्ध सिद्धना स्वरूपमां परिणमे छे,
अनंत परमाणु अने अनंत सिद्ध परमात्मा–एक क्षेत्रावगाहे रहेला छे छतां सिद्ध कदी
परमाणुरूपे नथी थता के परमाणु कदी सिद्धरूपे थतो नथी. अरे, एकक्षेत्रे अनंता सिद्धो
रहेला छे छतां एक सिद्ध बीजा सिद्धरूपे कदी थता नथी, कदी एक बीजामां मळी जता
नथी; एज रीते अनंता परमाणु एकक्षेत्रे रह्या छतां कोइ परमाणु बीजा परमाणु रूप
थइने परिणमतो नथी. आ द्रष्टांते जगतना बधा पदार्थोमां भिन्नपणुं समजवुं. जेम जड
कदी चेतन थईने परिणमतुं नथी अने चेतन कदी जडरूप थइने परिणमतुं नथी, तेम
जगतनो कोइ पदार्थ कदी बीजा पदार्थरूप थइने परिणमतो नथी; स्व स्वरूप रहीने ज
परिणमे छे.
कोइ कहे के वस्तुने वळी परिणमवानी उपाधि क्यांथी लागी? आ पर्याय एने
क्यांथी वळगी? तो कहे छे के अरे भाई, परिणमन के पर्याय ए कांई उपाधि नथी, ए
तो वस्तुनो स्वभाव ज छे, जो वस्तु परिणमे नहि तो तेनो अभाव ज थइ जाय.
परिणमन अने पर्याय तो सिद्धमांय छे. पर्याय तो वस्तुनो एक स्वभाव छे, पर्याय
वगरनी वस्तु होय ज नहि. सिद्धने जे पर्याय थाय छे ते शुद्ध थाय छे, एटले पर्याय
पोते कांइ उपाधि नथी, पण पर्यायमां जे रागद्वेष मोहादि विकारभावो जीव करे छे ते
स्वभावरूप न होवाथी उपाधिरूप छे. रागादि काढी नांखवा माटे कोई पर्यायने ज
आत्मामांथी काढी नांखवा मागे तो पर्याय वगर आत्मा ज क्यांथी रहेशे? माटे
पर्यायने कांई वस्तुमांथी काढी नांखवानी नथी; पण पर्यायने स्वाश्रय तरफ वाळतां
विकारभावनी उपाधि नीकळी जाय छे.
आत्मानुं ज्ञान परने जाणे तेथी कांई ज्ञानमां परनी उपाधि आवी जती नथी;
ज्ञान पोते ज तेवा जाणन भावरूपे परिणमे छे. ज्ञान स्वयं ज्ञानरूपे परिणमे छे, त्यां
ज्ञानने ज्ञेय साथे संबंध कहेवो ते व्यवहार छे. परमार्थे ज्ञानने पर साथे कंई संबंध
नथी,
भाई, जीवनमां ज्ञानना संस्कार रेड तो ते तने शरणरूप थशे. संयोग कांई तने
शरणरूप नहि थाय. भिन्नज्ञाननी भावना जीवनमां घूंटी हशे तो देहनी भिन्नता थवाना
अवसरे ज्ञानमां भींस नहि पडे...‘हुं तो ज्ञान छुं’–एवो पडकार करतो आत्मा ज्ञानना
ऊंडा संस्कार परभवमांय साथे लई जशे. पण जेणे पहेलेथी भावना घूंटी हशे तेने ज
खरे टाणे तेनुं फळ आवशे.
हुं ज्ञान, परनुं कर्तृव्य मारामां नहि–आवा अकर्ताभाववडे ज्ञानीसंतोए अनंता
परद्रव्यो प्रत्येथी पोतानी परिणतिने समेटी लीधी छे ने परिणतिने निजज्ञानमां ज जोडी
छे. अहा, केटलो हळवो!! अनंतपदार्थना कर्तृत्वनो भार माथेथी उतारी नाख्यो ने ज्ञान
अत्यंत हळवुं–निराकूळ शांत थयुं.