Atmadharma magazine - Ank 252
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 7 of 29

background image
ः ४ः आसोः २४९०
ज्ञानमां ज्यारे परद्रव्य छे ज नहि, पछी तेने अनुकूळता शुं? ने प्रतिकूळता शुं?
ज्ञान परज्ञेयने जाणे छे त्यां पण ज्ञान तो ज्ञानरूप ज छे, ज्ञान ज्ञेयरूप थतुं नथी. जेम
खडी ते खडीरूपे ज (पोताना सफेदपणामां ज) विस्तरे छे, खडी कांइ भींतरूपे
विस्तरती नथी. खडी विस्तरीने कदी भींतरूप थती नथी, खडीरूप ज रहे छे; तेम
ज्ञानस्वरूप आत्मा छे ते ज्ञानस्वरूपे ज विस्तरे छे, ज्ञान कांई परज्ञेयमां विस्तरतुं
नथी. आत्मा विस्तरीने कदी परज्ञेयमां जतो नथी, ज्ञानस्वरूपमां ज रहे छे. केटलुं स्पष्ट
भेदज्ञान!! ने आवुं भेदज्ञान करे तो स्वाश्रयमां केवी शांति थाय?
अंदरमां ज्ञाने रागने जाण्यो, तो शुं ज्ञान रागरूप थई गयुं? ना; ज्ञाननो
विस्तार तो ज्ञानरूप ज छे, ज्ञाननो विस्तार रागरूप नथी. ज्ञान रागरूप थया वगर ज
रागने जाणे छे, माटे ज्ञान रागने जाणे छे ते व्यवहार छे; ज्ञान ज्ञान ज छे ए निश्चय
छे. रागने जाणतां कांई ‘रागनुं ज्ञान’ नथी, ‘ज्ञाननुं ज ज्ञान’ छे. आम सर्व पर
भावथी भिन्न ज्ञानने देखवुं ते सम्यग्दर्शन छे.
अहीं तो कहे छे के ज्ञान परनुं तो नथी; ‘रागनुं ज्ञान’ पण नथी अने ‘ज्ञाननुं
ज्ञान’ एम कहेवुं तेमां पण भेदरूप व्यवहार छे; केम के ज्ञानथी जुदुं कांई बीजुं ज्ञान नथी
के जेनुं आ ज्ञान होय. एटले ‘ज्ञाननुं ज्ञान’ एम स्व स्वामी अंशना भेद पाडवामां पण
व्यवहार छे, ते व्यवहारथी खरेखर कांई साध्य नथी. माटे ‘ज्ञान’ ते ‘ज्ञान’ ज छे, एम
ज्ञानने एकने सर्व भेदभावोथी रहित स्वसंवेदनमां लेवुं ते परमार्थ छे.
चेतयिता एटले चेतनारो आत्मा, ते ज्ञानगुणथी भरेलो पदार्थ छे, आत्मानो
झंडो ज्ञान छे, ज्ञान झंडो सदाय परभावोथी ऊंचो ने ऊंचो, जुदो ने जुदो रहे छे. आवा
ज्ञानझंडाने प्रतीतमां लइने ज्ञानी कहे छे के झंडा ऊंचा रहे हमारा.
अहीं तात्त्विक संबंधनो विचार करतां एटले के साचा संबंधनो विचार करतां,
चेतयिताने पर साथे तो कांइ संबंध नथी; केम के चेतयिता जो जडनो होय तो ते पोते
जड थइ जाय. तात्त्विक संबंध एवो छे के जे जेनुं होय ते ते ज होय, ज्ञान आत्मानुं छे
तेथी ज्ञान ते आत्मा ज छे. तेम ज्ञानपर्यायरूपे परिणमतो चेतयिता, परने जाणतां
छतां परनो नथी पण चेतयितानो ज चेतयिता छे, पोताना सामर्थ्यथी सर्वने
जाणवारूप परिणम्यो तेथी लोकालोकनो ज्ञाता कह्यो, ते व्यवहार छे; खरेखर ज्ञाता
लोकालोकनो नथी, ज्ञाता ज्ञातानो ज छे एवो भेद पण परमार्थमां नथी, ‘ज्ञाता छे’ ते
ज्ञाता ज छे–ए परमार्थ छे.
आत्मानुं स्वरूप ज्ञान छे, ने ज्ञान ते आत्मा छे,–तात्त्विक द्रष्टिथी जोतां आवो