जाय छे तेटली तेटली निर्जरा थती जाय छे. अंतरमां तेमने सम्यग्दर्शनरूपी दीवडावडे
मार्गनी प्रसिद्धि थइ गइ छे. आवा मार्गनी प्रसिद्धि वगर, शुभभाववडे खरेखर संवर
के निर्जरा थाय नहि. चारित्रनी साची क्रिया कइ? के शुभाशुभ योगथी निवर्तीने
उपयोग निजस्वरूपमां प्रवर्ते ते ज चारित्रनी क्रिया छे, ने ते ज निर्जरा छे, निर्जरा
कहो, धर्म कहो के मोक्षमार्ग कहो, ते रागना अभावरूप छे. सम्यग्दर्शन ज्ञानपूर्वक जेटली
शुद्धता थइ तेटली मार्गनी प्रसिद्धि छे.
निर्जरानुं कारण छे. शुद्ध स्वरूपमां अविचलित चैतन्यपरिणति ते ध्यान छे, ने ते ज
मोक्षहेतु छे. आवुं ध्यान कोने होय? के प्रथम तो जेणे स्व–परने भिन्न जाणीने हेय–
उपादेयने ओळख्या होय, उपादेय एवा निजस्वरूपने स्वानुभवथी प्राप्त कर्युं होय,
अने ते निजस्वरूपने ज साधवामां जेनुं मन रमतुं होय, एवो मुमुक्षु गुणगुणीभेदथी
पण पार थइने अभेद आत्मपरिणतिथी अचलपणे निजस्वरूपने संचेते छे–अनुभवे
छे, तेने ध्यान छे; अने ते जीव रागादि चीकासथी अत्यंत रहित वर्ततो थको, पूर्वे
बंधायेली कर्मरजने खेरवी नांखे छे; चैतन्यनी शुद्धता वधतां कर्मो खरी पडे छे. आवा
ध्यानमां अशुभ ने शुभ बंने परिणामनो अभाव छे. जुओ, शुभरागना अभावरूप
ध्यानने निर्जरानुं कारण कह्युं छे. शुभराग ते खरेखर निर्जरानुं नहि पण शुभास्रवनुं
कारण छे. प्रथम तो आत्मप्रयोजन साधवानी जेने धून जागी होय–तेनी वात छे. हजी
तरत आवी उग्र ध्यानदशा भले न प्रगटे पण आवुं ध्यान ते निर्जरानुं कारण छे एम
तेनुं स्वरूप बराबर ओळखे तो सम्यक् तत्त्वनिर्णय वडे मिथ्यात्वादिनी तो निर्जरा
थई जाय, ने सम्यग्ज्ञानरूप मार्ग प्रसिद्ध थाय. आवा सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान
पछी चारित्रदशामां उत्कृष्ट निर्जरानी वात अहीं लीधी छे. सम्यग्दर्शन पहेलां तो
मोक्षना हेतुरूप निर्जरा होती ज नथी. निर्जरा संवरपूर्वक ज होय छे; अने संवर
आस्रवना निरोधवडे थाय छे. अनंतसंसारना कारणरूप सौथी मोटो जे आस्रव
मिथ्यात्वनो छे तेनो निरोध सम्यग्दर्शन वडे ज थाय छे. जेणे मिथ्यात्वरूप महान
आस्रवने रोक्यो नथी तेने बीजा अव्रतादिना आस्रवो पण अटके नहि, एटले तेने
संवर–निर्जरा पण न थाय. तेथी कह्युं छे केः जाहेर थाव के मिथ्यात्व ते ज आस्रव छे
ने सम्यक्त्व ते संवर छे. संसारनुं मूळ मिथ्यात्व छे ने मोक्षनुं मूळ सम्यक्त्व छे.