अशुद्धताने तथा कर्मोने क्यांथी टाळशे? तेनो उपयोग तो बहारमां–रागमां ने
परमां ज भम्या करशे एटले तेने संवर के निर्जरा थाय नहि. उपयोगनी स्वरूपमां
एकाग्रता वडे ज संवर थाय छे ने पछी ते उपयोगनी शुद्धता वधतां निर्जरा थाय छे.
आ रीते शुद्ध उपयोग ज संवर अने निर्जरानुं कारण छे. अने संवर निर्जरा ते
मोक्षनुं कारण छे.
खरेखर निर्जरानुं कारण नथी.
ज कारण छे. सम्यग्द्रष्टिना परिणाममां राग होवा छतां, तेनो उपयोग रागथी जुदो
पडी गयो छे एटले उपयोगमां शुद्धता प्रगटी छे, ते शुद्धता संवर–निर्जरानुं कारण छे;
अथवा शुद्ध उपयोग ते पोते ज भावसंवर ने भावनिर्जरा छे. समकिती धर्मात्मा
अंर्तद्रष्टिथी जाणे छे के मारा अनंता गुणोमां क्षणेक्षणे विशुद्धतानुं कार्य थइ ज रह्युं छे,
पछी बीजानुं मारे शुं प्रयोजन छे?
जीवन प्रगट थशे. चिदानंदस्वभाव एवो छे के तेनो पत्तो मेळववा जतां विकल्पो
थाकी जाय छे, विकल्प वडे ते ध्यानमां आवी शकतो नथी. विकल्पथी दूर थइने
उपयोग ज्यारे अंतरमां वळे छे ने बीजी चिंता छोडीने त्यां एकाग्र रहे छे त्यारे
शुद्धोपयोगरूप ध्यान प्रगटे छे, जेम जेम उपयोग एकाग्र थतो जाय छे तेम तेम
तेनी शुद्धता वधती जाय छे (–अर्थात् चैतन्यनुं प्रतपन थतुं जाय छे) ते
भावनिर्जरा छे, तेना वडे क्षणमात्रमां अनंता कर्मो फळ दीधा वगर खरी जाय छे,
ते द्रव्यनिर्जरा छे. आवुं निर्जरानुं स्वरूप जे ओळखे तेने ज यथार्थ तत्त्वश्रद्धा वडे
सम्यग्ज्ञानीना मार्गनी प्रसिद्धि थाय छे.