उपयोग तो रागमां एकाग्रताथी मलिन थइ रह्यो
छे, अने ते तो आस्रवनुं ज कारण छे; तेने
ज्ञानीना मार्गनी प्रसिद्धि थती नथी. ज्ञानीना
अंतरमां तो सम्यग्दर्शनरूपी दीवडा वडे मार्गनी
प्रसिद्धि थई छे. तेनो उपयोग रागथी जुदो पडी
गयो छे एटले उपयोगमां शुद्धता प्रगटी छे, ते
शुद्धता संवर–निर्जरानुं कारण छे.
ने तेमां उपयोगने लीन करीने विशेष शुद्धता करतां अशुद्धता छूटी जाय छे ने कर्मो
निर्जरी जाय छे. आ रीते निर्जरामां त्रण प्रकार आव्या (१) शुद्धतानी वृद्धि (२)
अशुद्धतानी हानी अने (३) कर्मोनुं खरवुं. पहेला बंने प्रकार भावनिर्जरारूप छे, तेमां
एक अस्तिरूप ने बीजामां नास्तिरूप प्रकार छे; ने त्रीजो प्रकार ते द्रव्यनिर्जरा छे ते
आत्माथी भिन्न, जडमां छे.
निर्जरा के मोक्ष थतो नथी. जेणे द्रव्यकर्मथी भिन्न आत्माने जाण्यो नथी. जेणे अशुद्ध
भावोथी भिन्न आत्मस्वभावने जाण्यो नथी, एटले शुद्धता ने अशुद्धता वच्चे के स्व अने