Atmadharma magazine - Ank 252
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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ः १६ः आसोः २४९०
सम्यक्मार्ग तेने प्रसिद्ध थतो नथी. सम्यग्द्रष्टिने जो के हजी शुभाशुभ भावोथी सर्वथा
निवृत्ति नथी थइ, परंतु जे शुभाशुभ भावो छे तेनाथी भिन्न चिदानंद स्वभावने
स्वानुभवथी जाण्यो छे, एटले अनुभवद्रष्टिमां तेने शुभाशुभनो अभाव छे; तेथी
शुभाशुभपरिणाममां एकत्वबुद्धिथी जे अनंत आस्रव थतो ते तो तेने अटकी ज गयो
छे, मिथ्यात्वकृत अनंता कर्मोनो तो संवर थयो छे, ने शुभाशुभकृत अल्प आस्रव छे.
शुद्धोपयोगी मुनिने पूर्ण संवर थाय छे.
आस्रवनुं मुख्य कारण शुं? ने संवरनुं मुख्य कारण शुं? ते पहेलां ओळखवुं
जोइए. आस्रवनुं अथवा तो संसारनुं मूळ कारण मिथ्यात्व छे; संवरनुं अथवा तो
मोक्षनुं मूळ कारण सम्यग्दर्शन छे. भेदज्ञान करीने उपयोग ज्यां निजस्वभाव तरफ
झूक्यो त्यारे शुभाशुभपरिणामना अभावथी द्रव्यकर्मना आस्रवनो पण अभाव थयो.
एटले विकारपरिणाम वगरनी एकली बाह्यक्रिया के योगनुं कंपन ते खरेखर बंधनुं
कारण नथी. कइ बाजु उपयोगने वाळवाथी आरुंव अटके एनी पण जेने ओळखाण
नथी ते उपयोगने कयां लइ जशे? विकारीभाव वगर एकलुं प्रदेशोनुं कंपन होय त्यां
रजकणो आवीने तरत ज चाल्या जाय छे, आत्मा साथे ते बंधाता नथी, तेमां स्थिति के
रस होतो नथी. आ रीते सम्यग्दर्शन अने शुद्धोपयोग थतां भावसंवर तेमज द्रव्यसंवर
थाय छे; एटले संवरनो प्रयोग अंतरमां छे. सम्यग्दर्शनमां स्वभावनी शुद्धतानुं वेदन
थयुं ने एटलो संवर थयो छतां हजी जेटला शुभाशुभपरिणाम थाय छे तेटलुं
अशुद्धतानुं वेदन पण छे ने तेटलो आस्रव पण थाय छे. शुद्धोपयोग वडे शुभाशुभ
भाव अटकया तेटलो संवर थयो, अने ते शुद्धोपयोगमां जेटली वृद्धि थइ तेटली निर्जरा
थइ. आ रीते शुद्धोपयोगना ज बळथी नवा कर्मनो आस्रव अटके छे, जुनां कर्मो निर्जरे
छे; एटले शुद्धोपयोग ते मोक्षनो हेतु छे.