Atmadharma magazine - Ank 252
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्मरजीस्टर नं. १८२
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धन्यवैरागी
रागी अने अरागी जीवनी विचारधारामां केवुं अंतर छे, ते नीचेनी पंक्तिद्वारा
कवि? प्रगट करे छेः–
राग उदै भोगभाव लागत सुहावनेसे
विना राग असे लागे जैसे नाग काले है.
रागहीसों लग रहे तनमें सदीव जीव,
राग गये आवत गिलानी होत न्यारे है.
राग सों जगत रीति झुठी सब सांची जाने.
राग मिटे सूझत असार खेल सारे है.
रागी बिनरागी के विचारमें बडोइ भेद
जैसे भटा पच काहु काहु को बयारे है.
रागवश प्राणी जगतमां असारने पण सार, क्षणिकने पण शरणभूत अने
बीभत्सने पण सुंदर माने छे. रागवश प्राणीने भोगविलास सारा लागे छे. ज्यारे
रागना अभावमां ते काळा नाग जेवा लागे छे. (भोग भूजंगसम.) रागने ज लीधे
जीव सदाय शरीरना लालनपालनमां लागी रह्यो छे, राग जतां ते देहने ग्लानियोग्य
अशुचीधाम समजे छे, अने तेनाथी भिन्नता चिंतवे छे. जगतना जे जूठा संबंध ने
रीतभात तेने रागने लीधे जीव साचा समजे छे, पण राग मटतां ए बधाय खेल तेने
असार भासे छे. आ रीते रागी अने अरागी जीवनी विचारधारामां मोटो भेद छे; जेम
अमुक भोजन कोइने तो पची जाय छे ने कोइने विपरीत पडे छे, ए ज रीते जगतनी
एक ज वस्तु, तेने ज्ञानी तो वैराग्यनो हेतु बनावे छे ने अज्ञानी रागनो हेतु बनावे
छे. आम ज्ञानी अने अज्ञानीनी परिणतिमां मोटो फेर छे. धन्य ते वैरागी ज्ञानी के जेने
सर्व प्रसंगे ज्ञान–वैराग्यमय परिणमन वर्ती रह्युं छे.
प्रभु कुंदकुंदस्वामी मुमुक्षु जीवने वीतराग थवानी केटली सुंदर प्रेरणा आपे छेः–
‘तेथी न करवो राग जरीये क्यांय पण मोक्षेच्छुए
वीतराग थइने ए रीते ते भव्य भवसागर तरे.’
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श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती प्रकाशक अने
मुद्रकः अनंतराय हरिलाल शेठ, आनंद प्रिन्टिंग प्रेस–भावनगर.