Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म रजीस्टर नं. जी १८२
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प्रभुजी! तारा पगले पगले मारे आववुं रे...
* पावापुरीनी यात्रा–भक्तिनुं एक द्रश्य *
वीरप्रभुजी मोक्ष पधार्या गौतम केवळ ज्ञान रे... वीरजीनुं शासन झूले रे...
देवदेवेन्द्र महोत्सव करे ज्यां दिन दीवाथी उजवाय रे... वीरजीनुं शासन झूले रे...
शैलेशीकरणे चडया प्रभुजी अयोगीपद धर्युं आज रे... वीरजीनुं शासन झूले रे...
सर्वे कर्मनो क्षय करीने सिद्धपद प्राप्त थाय रे... वीरजीनुं शासन झूले रे...
पावापुरी सिद्धक्षेत्र प्रभुजी समश्रेणी कहेवाय रे... वीरजीनुं शासन झूले रे...
निर्वाण कल्याणक सूरपति उजवे स्वर्गेथी उतरी आज रे... वीरजीनुं शासन झूले रे...
अखंडानंद स्वरूप प्रगटावी पहोंच्या शिवपुर धाम रे... वीरजीनुं शासन झूले रे...
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श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती प्रकाशक अने
मुद्रक: अनंतराय हरिलाल शेठ, आनंद प्रिन्टिंग प्रेस, भावनगर.