चाहतो हो, तो तारा ध्येयनी दिशा
पलटावी नांख; जगतथी उदास थईने
आत्मानो रंग लगाडीने अंतरमां
चैतन्यस्वभावने ध्याव. ए ध्यानमां
अनुभवाशे.
Atmadharma magazine - Ank 255
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).
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