Atmadharma magazine - Ank 255
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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तंत्री: जगजीवन बावचंद दोशी
वर्ष: २२: अंक: ३: वीर सं. २४९१ पोष
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संतो कहे छे–
भाई! तने आ भवदुःख व्हालां न
होय ने मोक्षसुखने तुं अनुभववा
चाहतो हो, तो तारा ध्येयनी दिशा
पलटावी नांख; जगतथी उदास थईने
आत्मानो रंग लगाडीने अंतरमां
चैतन्यस्वभावने ध्याव. ए ध्यानमां
तने परम आनंदमय मोक्षसुख
अनुभवाशे.
(आ संबंधी विस्तृत प्रवचन माटे अंदर जुओ)
२पप