माहात्म्य करवा योग्य दुनियामां कांई होय तो ते एक मात्र सर्वज्ञप्रणीत धर्म
निर्धनादि स्थितिमां होय तोपण अल्पकाळमां जगतने वंद्य, त्रण लोकनो नाथ थवानो
छे; अने वर्तमानमां पण तेनी पासे जे साधकभाव छे तेनो त्रण लोकना वैभव करतां
पण वधारे महिमा छे. जेेने पोतामां धर्म प्रिय होय तेने धर्मात्मा प्रत्ये बहुमान आवे
ज. धर्मात्मानुं बहुमान ते धर्मनुं ज बहुमान छे. धर्म धर्मात्माथी जुदो नथी.
प्रवचनसार गा.१७२ मां
आचार्यदेवे एमां भर्यां छे. ते रहस्य अपूर्वपणे विचारवा जेवां छे, ‘अलिंगग्रहण’
भगवान आत्मा अलिंगग्रहणथी ज एटले के विकल्प वगरना स्वसंवेदनथी ज
अनुभवाय छे. आत्मानो स्वभाव रागमय नथी एटले रागवडे ते अनुभवातो नथी.
आत्मानो स्वभाव ज्ञानमय छे, ज्ञानमय थईने ज ते अनुभवाय छे.
निश्चयथी जे शुद्ध आत्मानी अनुभूति छे ते समस्त जिनशासननी अनुभूति छे,
जिनशासननो (एटले के सर्वे श्रुतनो) सार ए ज छे के परथी भिन्न शुद्ध आत्मानी
अनुभूति करवी. आवी अनुभूति वडे ज वीतरागता थाय छे.
अहा, आठ वरसनो छोकरो ज्यारे आत्माने जाणीने, वैराग्यथी मुनि थईने,
एने कोमळ हाथमां आहार करावता हशे...पछी स्वरूपध्यानमां लीन थईने ए नानकडा
केवळज्ञानीपणे आकाशमां विचरतो हशे...एनो दिव्य देदार केवो हशे?