Atmadharma magazine - Ank 256
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: महा : : १३ :
वि...वि...ध...व...च...ना...मृ...त
आत्मधर्मनो चालु विभाग : लेखांक–प :
विविध वचनामृतनो आ विभाग प्रवचनोमांथी, विविध शास्त्रोमांथी
तेमज रात्रिचर्चा वगेरे प्रसंगो उपरथी तैयार करवामां आवे छे.
(११प) धर्मात्मानुं बहुमान
माहात्म्य करवा योग्य दुनियामां कांई होय तो ते एक मात्र सर्वज्ञप्रणीत धर्म
अने तेने धरनार धर्मात्मा ज छे. तेनुं ज बहुमान कर; ते धर्मात्मा वर्तमान कदाच
निर्धनादि स्थितिमां होय तोपण अल्पकाळमां जगतने वंद्य, त्रण लोकनो नाथ थवानो
छे; अने वर्तमानमां पण तेनी पासे जे साधकभाव छे तेनो त्रण लोकना वैभव करतां
पण वधारे महिमा छे. जेेने पोतामां धर्म प्रिय होय तेने धर्मात्मा प्रत्ये बहुमान आवे
ज. धर्मात्मानुं बहुमान ते धर्मनुं ज बहुमान छे. धर्म धर्मात्माथी जुदो नथी.
(११६) अलिंगग्रहण आत्मा
प्रवचनसार गा.१७२ मां
‘जानीहि अलिंगग्रहणं’ कहीने आत्मानुं घणुं सुंदर
अलौकिक वर्णन कर्युं छे; ए अधिकार दर्शनशुद्धिनो छे, भेदज्ञानना अपूर्व रहस्यो
आचार्यदेवे एमां भर्यां छे. ते रहस्य अपूर्वपणे विचारवा जेवां छे, ‘अलिंगग्रहण’
भगवान आत्मा अलिंगग्रहणथी ज एटले के विकल्प वगरना स्वसंवेदनथी ज
अनुभवाय छे. आत्मानो स्वभाव रागमय नथी एटले रागवडे ते अनुभवातो नथी.
आत्मानो स्वभाव ज्ञानमय छे, ज्ञानमय थईने ज ते अनुभवाय छे.
(११७) जिनशासन
निश्चयथी जे शुद्ध आत्मानी अनुभूति छे ते समस्त जिनशासननी अनुभूति छे,
एटले के आखुंय जिनशासन ‘आत्मानी अनुभूति’मां आवी जाय छे. आखा
जिनशासननो (एटले के सर्वे श्रुतनो) सार ए ज छे के परथी भिन्न शुद्ध आत्मानी
अनुभूति करवी. आवी अनुभूति वडे ज वीतरागता थाय छे.
(११८) वाह, आठ वरसनो छोकरो!
अहा, आठ वरसनो छोकरो ज्यारे आत्माने जाणीने, वैराग्यथी मुनि थईने,
हाथमां मोरपींछी ने कमंडळ लईने नानकडा पगले विचरतो हशे...मोटामोटा श्रावको
एने कोमळ हाथमां आहार करावता हशे...पछी स्वरूपध्यानमां लीन थईने ए नानकडा
मुनि केवळज्ञान उपजावता हशे...ए धन्य देदार केवो हशे? अहा, आठ वरसनो छोकरो
केवळज्ञानीपणे आकाशमां विचरतो हशे...एनो दिव्य देदार केवो हशे?