Atmadharma magazine - Ank 256
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 2 of 29

background image
तंत्री : जगजीवन बावचंद दोशी
वर्ष २२ : अंक ४ : वीर सं. २४९१ माह
_________________________________________________________________
गुणनो स्वभाव
गुणनो स्वभाव गुणरूप रहेवानो छे,
गुणनो स्वभाव दोषरूप थवानो नथी. ज्ञानगुणनो
स्वभाव ज्ञानरूप रहेवानो छे. अज्ञानरूप थवानो
एनो स्वभाव नथी; सुखनो स्वभाव सुखरूप
रहेवानो छे. दुःखरूप थवानो एनो स्वभाव नथी,
प्रभुत्वनो स्वभाव प्रभुतारूप रहेवानो छे, पामर
थवानो प्रभुत्वनो स्वभाव नथी.–एम आत्माना
दरेक गुणनो स्वभाव गुणरूप–शुद्धतारूप थवानो
छे. पण दोष के अशुद्धतारूप थवानो कोई गुणनो
स्वभाव नथी. एटले मलिनता–विकार के दोष : ते
खरेखर आत्माना गुणनुं कार्य नथी तेथी तेने
खरेखर आत्मा कहेता नथी. स्वशक्तिसन्मुख
थईने निर्मळ भावरूप परिणम्यो ते ज खरेखर
आत्मा छे.
२प६