Atmadharma magazine - Ank 256
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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अत्यंत स्पष्टपणे मोक्षमार्गनुं प्रतिपादन करीने, तेनुं ज सेवन करवानी
मोक्षार्थीने भलामण करतां श्री अमृतचंद्रस्वामी समयसारमां कहे छे के–
सिद्धान्तोऽयमुदारचित्तचरितैर्मोक्षार्थिमिः सेव्यताम्
शुद्धंश्चिन्मयमेकमेवपरमं ज्योतिसदैवास्म्यहं।
एतेयेतु समुल्लसंति विविधाः भावाः पृथग्लक्षणाः
तेहं नास्मि यतोत्र ते मम परद्रव्यं समग्रा अपि।।
जेमना चित्तनुं चरित्र उदात्त (ऊज्जवळ) छे एवा मोक्षार्थीओ आ सिद्धांतनुं
सेवन करो के–
हुं तो शुद्ध चेतन्यमय परम ज्योति ज सदाय छुं; अने आ जे भिन्न लक्षणवाळा
विविध प्रकारना भावो प्रगट थाय छे ते हुं नथी, कारणके ते बधाय मने परद्रव्य छे.
सर्वथा चिद्भाव ज एक ग्रहण करवा योग्य छे, बाकीना समस्त भावो छोडवा
योग्य छे–एवो सिद्धांत छे.
आवा सिद्धांतनुं सेवन करनार सिद्ध थाय छे.
– एक सिद्धांत –
मोक्षमार्गने माटे आ एक सिद्धांत छे के, मोक्षमार्ग आत्माना आश्रये छे; एटले
आत्मारूप जे भाव थयो होय ते ज भाव मोक्षमार्ग छे. हवे आत्मानो स्वभाव श्रद्धा–
ज्ञान–चारित्र छे, ते स्वभावरूप थयेलो भाव (एटले के सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप
थयेलो निर्मळ भाव) ते ज मोक्षमार्ग छे; पण तेनाथी विरूद्धभावो ते मोक्षमार्ग नथी.
जेम मिथ्यात्व ते मार्ग नथी. अज्ञान ते मार्ग नथी, तेम राग ते पण मार्ग नथी, केमके
ते भावो आत्माना स्वभावरूप नथी. ते खरेखर आत्मारूप नथी पण अनात्मारूप छे.
आत्माना स्वभाव साथे जेनी जात मळे नहि ते मोक्षमार्ग केम कहेवाय? आत्माने
साधनारा परिणाम आत्मारूप होय; अनात्मारूप न होय. आ रीते मोक्षमार्गमां शुद्ध
आत्मा ज उपादेय छे, शुद्ध आत्माने उपादेय करनार ज मोक्षमार्गने साधे छे, बीजा कोई
मोक्षने साधता नथी. रागनो आदर करनार कदी मोक्षने साधी शकता नथी.–आ रीते
कया भावथी मोक्ष सधाय छे एनो आ सिद्धांत बताव्यो.
(परमात्मप्रकाश–प्रवचनमांथी)