: ४ : : महा :
खरेखर जीव कहेता नथी. ए साचो जीव नथी, जीवनुं साचुं स्वरूप ए नथी. ज्ञान–दर्शन–
सुख–सत्तारूप भावप्राणथी जीवन जीवे ते ज साचो जीव छे, ते ज जीवनुं साचुं स्वरूप छे.
(७) ‘शक्ति’मां चार भावो छे, उदयभाव नथी
आ जीवत्व वगेरे शक्तिओ त्रिकाळ परम पारिणामिकभावे छे; अने ते
परमस्वभावना आश्रये तेनी जे निर्मळ परिणति प्रगटे तेने क्षायिक क्षायोपशमिक
अथवा औपशमिक भाव कहेवाय छे. विकार औदयिकभावे छे तेने खरेखर शक्तिनी
पर्याय कहेता नथी, शक्तिनी पर्याय तेने ज कहीए छीए के शक्तिना अवलंबने जे
निर्मळरूपे परिणमे. ज्ञानशक्तिनी पर्याय सम्यग्ज्ञानने ज कहेवाय, अज्ञानने ज्ञान–
शक्तिनी पर्याय केम कहेवाय? विकार ए कांई शक्तिनुं कार्य नथी. एटले शक्तिमां
सामान्य अपेक्षाए पारिणामिक भाव, अने विशेष अपेक्षाए त्रण निर्मळभावो लागु पडे
छे, पण उदयभाव तेमां लागु पडतो नथी.
(८) केवळज्ञानी जेवो शक्तिसंपन्न
केवळज्ञानीप्रभुने एक साथे अनंतशक्तिओ छे, तेम दरेकेदरेक आत्मामां
अनंतशक्तिओ एक साथे वर्ते ज छे ए शक्तिनुं भान करतां तेनुं सम्यक्परिणमन
थईने केवळज्ञानादि प्रगटे छे.
(९) चैतन्यशक्तिनो रस आवे तो तेमां एकाग्र थाय
आत्मवस्तुमां ज्ञान अने अनंतशक्तिओ छे, तेना वगर आत्मानुं स्वरूप सिद्ध
न थाय. जेने चैतन्यशक्तिनो रस आवे ने तेनी किंमत भासे ते शक्तिमान एवा
आत्मस्वभाव उपर मीट मांडीने तेमां एकाग्र थाय. जेने जेनो रस होय ते तेमां एकाग्र
थाय छे; तेम जेेने चैतन्यशक्तिनो रस छे ते पोतानी चैतन्यशक्तिमां एकाग्र थाय छे;
ने एकाग्र थतां उपशम–क्षयोपशम के क्षायकभाव प्रगट थाय छे, ने उदयभाव छूटतो
जाय छे. चैतन्यशक्तिओ पारिणामिकभावे छे अने तेनी निर्मळ व्यक्तिओ क्षायिक
क्षायोपशमिक, के औपशमिकभावे छे, एमां उदयभावरूप राग न आवे. जडना संबंधनी
तो वात ज कयां रही? रागादिभावो ते शक्तिनी जात नथी पण शक्तिथी विरुद्धभाव छे.
(१०) असंख्यप्रदेशनो चैतन्यराजा
चैतन्यभगवान असंख्यप्रदेशोनो राजा छे, पोताना असंख्यप्रदेशोमां ते शोभे
छे; असंख्य प्रदेशो ए एनो स्वदेश छे; ने ते स्वप्रदेशोमां अनंतगुणोरूपी अनंतप्रजा
परस्पर संपीने सहभावपणे रहेल छे. एकेक गुण स्वसामर्थ्य रूप वैभवथी परिपूर्ण
छे....आवा वैभवसंपन्न असंख्यप्रदेशोनो राजा आ चैतन्यराजा छे. तेनो महिमा
अचिंत्य छे. आ राजा पोतानी स्वशक्तिमां राजे छे–शोभे छे.
(११) ‘‘ज्ञान’ कळीमांथी केवळज्ञान खीले
‘‘ज्ञान’’ एटले जाणवुं....जाणवुं....जाणवुं; ए जाणवामां वच्चे रागद्वेष न आवे,
एटले वीतरागभागरूप ज ज्ञान रहे; ए ज्ञानमां शांति–सुख–आनंद छे. असंख्यप्रदेश ए