Atmadharma magazine - Ank 256
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: महा : : ३ :
छे, तेने समजावे छे के भाई, तारुं जीवन जडथी नथी, तारुं जीवन तो तारा चैतन्य–
प्राणथी ज छे.
(३) निःशंक श्रद्धारूपी वि–शल्या
जेम ‘विशल्या’ आवतां वेंत, लक्ष्मणने लागेली रावणनी शक्ति, भागी, ने
लक्ष्मणजी पोतानी शक्तिसहित जाग्या. तेम आत्मा अनादिथी निज शक्तिओने भूल्यो
छे, ने मोहशक्तिथी ते बेभान बन्यो छे, पण ज्यां शल्यथी विरहित एवी निःशल्य–
निःशंक श्रद्धारूप सम्यकत्वशक्ति जागी त्यां मोहशक्तिओ भागी, ने चैतन्यलक्षी
भगवान आत्मा पोतानी अनंत शक्तिओना सम्यक् परिणमनथी जागी ऊठयो. तेनी
सामे हवे मोहनी शक्ति टकी शके नहि.
(४) चैतन्यनो दरबार
आत्माना अंतरमां मोटो चैतन्यदरबार भर्यो छे, तेमां अनंत वैभवसंपन्न अनंत
शक्तिओ शोभी रही छे. अंतरद्रष्टिना दरवाजे ज्यां आवा चैतन्यदरबारमां प्रवेश्यो त्यां
तो अनंतगुणसंपन्न आत्मप्रभुना साक्षात्कारथी परम आनंदनो अनुभव थयो. आवो
अनुभव करवा माटे हे जीव! सम्यक्श्रद्धानी चिनगारीवडे तारी चैतन्यशक्तिने
चेताव....प्रगटाव. अने ए प्रकाश वडे तारा अंतरमां चैतन्यदरबारने देख.
(प) शक्तिनी अस्तिमां विकारनी नास्ति
आचार्यदेवे आ ४७ शक्तिओ अस्तिथी वर्णवी छे, तेमां रागादिनुं नास्तिपणुं
तो अनेकान्तना बळे स्वयमेव आवी जाय छे. जेम मांगलिकमां नमः समयसाराय कह्युं
त्यां तेना चार विशेषणो अस्तिरूप बताव्या–स्वानुभूतिथी प्रकाशमान, भावस्वरूप,
चित्स्वभाव अने अन्य सर्वे भावोने जाणनार, एम अस्तिरूप चार विशेषणोथी
समयसारनुं स्वरूप बताव्युं. त्यां रागादिना अभावनुं कथन कर्युं न होवा छतां तेमां
तेना अभावनी वात आवी ज जाय छे. स्वभावनी अस्ति कही तेमां परभावनी नास्ति
आवी ज गई, एवुं अनेकान्तनुं बळ छे; तेम अहीं ४७ शक्तिमां जीवत्व, ज्ञान वगेरे
शक्तिओ अस्तिरूप वर्णवी तेमां रागादिनो अभाव तो आवी ज गयो. ज्ञानादि
शक्तिओ रागादि परभावनी नास्तिपणे ज प्रकाशे छे. एटले शक्तिओनी प्रतीत करवा
जतां भूतार्थस्वभावनो ज आश्रय थई जाय छे.
(६) साचो जीव
ज्ञान–दर्शन–सुख–सत्ता ए आत्मानुं जीवन छे. अज्ञान के रागादिभावो ते
खरेखर जीवनुं जीवन नथी. जीव तेने कह्यो के पोताना निर्मळ ज्ञानादि भावोवडे जे
जीवे. एकला रागद्वेषथी के जडप्राणोथी जीवे तेने जीव नथी कहेता, एटले व्यवहारजीवने
परमार्थे जीव नथी कहेतां. परमार्थजीव–साचो जीव–शुद्धजीव तेने कहीए के जे शुद्ध
जीवत्व वडे जीवे. एटले सम्यग्दर्शन थयुं त्यारथी ज शुद्ध जीवन जीवनारो थयो ने एने
ज शुद्धजीव कह्यो विकारी भावने के ईन्द्रियवाळो वगेरेने