Atmadharma magazine - Ank 256
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: २ : : महा :
अचिंत्य महिमावंत
आत्मशक्ति
अनंतशक्तिथी भरेला आत्मद्रव्यनो कोई
अचिंत्यमहिमा छे; तेनी एकेक शक्तिनो पण अपार
महिमा छे. समयसारना परिशिष्टमां
अमृतचंद्रस्वामीए जे ४७ शक्तिओनुं अद्भुत वर्णन
कर्युं छे तेना उपर हमणां मागशर–पोष मासमां
१४मी वखत प्रवचनो थया. ज्यारे ज्यारे आ
शक्तिओ वंचाय त्यारे त्यारे गुरुदेवने नवीन
आह्लाद आवे छे, ने श्रोताजनो पण फरीफरी एना
श्रवणथी उल्लसित थाय छे. आ वखतनां
प्रवचनोमांथी दोहन करीने केटलोक भाग अहीं
आपवामां आव्यो छे.
(१) ४७ घातिकर्मोनी घातक ४७ शक्ति
अनेकान्तस्वरूप आत्मा अनंतशक्तिना वैभवथी परिपूर्ण छे. एनी महत्ता
लावीने ज्ञान ज्यां अंतर्मुख थईने परिणम्युं त्यां ते ज्ञानना निर्मळ परिणमननी साथे
ज बीजी अनंत शक्तिओ पण निर्मळ परिणमनथी उल्लसे छे; तेनुं अलौकिक वर्णन
अमृतचंद्र स्वामीए ४७ शक्ति बतावीने कर्युं छे. आ ४७ शक्तिओ घातीकर्मोनी घातक
छे. घातिकर्मोनी प्रकृति पण ४७ छे. ४७ शक्तिद्वारा अनंत शक्तिस्वरूप आत्माने जे
ओळखे तेने ४७ घातीकर्मोनो नाश थईने केवळज्ञानादि अनंत शक्तिओ खीली जाय.
(प्रवचनसारमां नयो पण ४७ छे, ने उपादान निमित्तना दोहा पण ४७ छे.)
(२) चैतन्यजीवन
सौथी पहेलां तो ज्ञान साथे जीवत्व पण छे. सौथी पहेलुं चैतन्यजीवन बताव्युं.
ज्ञाननी साथे चैतन्यप्राण वर्ती रह्या छे, आवा प्राणने धारण करीने आत्मा जीवी रह्यो
छे. आवी शक्ति दरेक आत्मामां छे. ते शक्तिनी प्रतीत करतां पर्यायमां ते प्रगट
परिणमे छे एटले साचुं चैतन्यजीवन प्रगटे छे. चैतन्यजीवनने भूलीने अनादिनो जड
प्राणोमां पोतानुं जीवन मानी रह्यो