: फागण: आत्मधर्म :१९:
साधकपणानी अने
सिद्ध थवानी भूमिका
फागण सुद एकमे पू. गुरुदेव सोनगढ पधारतां ज
सुवर्णधामना रळियामणा वातावरणमां, साधकपणुं थईने सिद्धपद
केम थाय, तेनी मधुरी वाणी वहेती थई.... समयसारमां (कळश
२६६थी) वांचन अधुरुं रहेल, ते फरी चालु करेल छे.....
आजे मांगलिकमां साधकपणुं पामीने सिद्ध थवानी वात आवी. अनंत चैतन्य–
शक्तिवाळो जे आत्मा, तेनो आश्रय करवाथी ज साधकपणुं थाय छे. जेओ कोई पण
प्रकारे उद्यम करीने मोहने दूर करी ज्ञानस्वभावनो आश्रय करे छे तेओ साधक थईने
सिद्ध थाय छे.
जेणे आत्मानुं हित करवुं होय तेणे कई भूमिमां वसवुं? के आ चैतन्यभूमि, के
जे अकंप छे–तेनो आश्रय करवो. आ चैतन्यभूमिकानो जेओ आश्रय करे छे तेओ ज
साधकपणाने पामे छे....ने एना ज आश्रये पछी सिद्धपणुं प्रगटे छे. आवी चैतन्य–
भूमिकाना आश्रयथी ज अनंतज्ञानीओए मार्ग साध्यो छे, साधे छे ने साधशे.–आ एक
ज मार्ग छे, बीजो मार्ग नथी.
भाई, तारा तत्त्वमां बे मोजुदगी छे–एक तारुं त्रिकाळी तत्त्व ने बीजी तारी
वर्तमान पर्याय; पण ए सिवाय परनी कोईनी मोजूदगी तारामां नथी. भाई, तारे
साधकपणुं करवुं छे ने? तो कई भूमिकाना आधारे तुं साधकपणुं प्रगटावीश? तारी
स्ववस्तु निश्चल छे, ते ज तने साधकपणानो आधार थाय एवी द्रढभूमिका छे. परनो
आधार लेवा जईश तो ए कांई तने आधार नहि आपे. चैतन्यभूमिकाना आश्रय
वगर संसारभ्रमण टळी शके नहि.
अरे, तारी चैतन्यभूमिका.....तेनो तें अनादिथी कदी आश्रय न लीधो. बहारना
आश्रयमां दुःखना ढगला छे–त्यां तुं प्रेम करी रह्यो छे? ने स्वभावना आश्रयमां परम
अचिंत्य सुख छे एनी साथे तुं प्रेम अने मित्रता केम नथी करतो? हितने माटे कंईक
विचार कर....विवेकचक्षु खोल.
साधकपणानुं परिणमन स्वद्रव्यना आश्रये थाय छे. बाह्य प्रवृत्तिना शुभाशुभ
परिणामना आश्रये कांई साधकपणुं थाय नहि. तारे साधक थवुं छे ने? तो साधक थवा
माटे कई भूमिका छे ते नक्की कर. साधकपणुं एटले शुद्ध सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र;
आत्मानो जे ज्ञानभाव सम्यग्दर्शनादिरूपे परिणम्यो ते साधकभाव छे, ने ते ज
ज्ञानभाव ज्यारे पूर्णदशारूपे परिणमे त्यारे सिद्धपणुं छे. आ रीते साधकपणुं ने
सिद्धपणुं ए बंनेरूपे ज्ञान ज परिणमे छे. माटे आ ज्ञानभूमिकानो जे आश्रय करे छे
तेने ज साधकपणुं अने सिद्धपणुं प्रगटे छे.