Atmadharma magazine - Ank 257
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: २२: आत्मधर्म :फागण:
भक्तामर–स्तोत्र: (अनुसंधान पानुं 4A थी चालु)
भगवानना खरा भक्तनुं लक्ष तो आत्मानी शुद्धि उपर ज छे. भगवाने जेवुं
कर्युं तेवुं ज ते करवा मांगे छे, भगवाने तो वीतरागभावनुं सेवन करीने रागने छोडयो
तो तेनो भक्त पण एम ज करवा मांगे छे. जे भगवाने कर्युं तेथी विरुद्ध करे एटले के
रागनो आदर करे तो तेने भगवाननो भक्त केम कहेवाय? माटे भगवानना भक्तनी
जवाबदारी छे के ते वीतरागभावने ज आदरणीय माने ने रागना कोई अंशने
आदरणीय माने नहि.
आ भक्तामर–स्तोत्र बोले छे तो घणा लोको, पण तेमां वीतरागताना केवा
अद्भुत भावो भर्या छे तेने समजता नथी. अरे, चैतन्यना महिमा पासे देवोनी ऋद्धि
पण ज्यां तुच्छ छे. त्यां ते बहारनी ऋद्धि (पैसा वगेरे) नी भावनाथी भक्तमार बोले
तेने भगवाननी भक्ति करतां आवडती नथी. अरे मूढ! वीतरागनी भक्तिवडे तुं
संसारने ईच्छे छे? आ वीतरागनी स्तुतिमां तो मोक्षना मंत्रो छे, भवरोग मटाडवाना
मंत्रो आमां भर्या छे.
स्तुतिकार कहे छे सम्यक् प्रणम्य अर्थात् सम्यक्प्रकारे प्रणमीने हुं आ स्तुति
करीश; एकला शब्दोथी के एकला रागथी नहि पण ‘सम्यक्प्रकारे’ एटले
वीतरागभावनो अंश प्रगट करीने हे जिनेन्द्र! हुं आपने स्तवीश. सम्यग्दर्शन ते
भगवाननुं परमार्थ स्तवन छे. वस्तुस्तव एटले सर्वज्ञदेवना गुणोनुं जेवुं स्वरूप छे
तेवुं लक्षमां लेवुं ते सर्वज्ञनी स्तुति छे.
भगवान ऋषभदेव, मुनि थया पहेलां एकवार अयोध्याना राजदरबारमां बेठा
हता. ईन्द्र देव–देवीओना नृत्यसहित भक्ति करतो हतो; एवामां नीलंजसा नामनी
एक अप्सरानुं आयुष्य नृत्य करतां करतां ज पूरुं थई गयुं ने एकाएक तेनो देहनो
विलय थई गयो. आवी क्षणभंगुरता जोतां ज भगवान संसारथी वैराग्य पाम्या ने
स्वयं दीक्षित थईने केवळज्ञान साध्युं. पछी समवसरणमां एमना दिव्यध्वनिवडे धर्मनी
‘आदि’ थई, अनेक जीवो धर्म पाम्या ने मोक्षगति पण शरू थई गई. पहेलां तो आ
भरतक्षेत्रमां असंख्यवर्षो सुधी जुगलीया जीवो अहींथी मरीने एक देवगतिमां ज जता;
पण ज्यां तीर्थंकर भगवाननी ध्वनिना दिव्यधोध चालु थया त्यां धर्म पामीने जीवोनुं
मोक्षमां जवानुं पण शरू थई गयुं, तेमज धर्मनो विरोध करनार जीवो नरकमां पण
जवा लाग्या. आ रीते मोक्षगति अने नरकगति बंने खूली गई; परंतु भगवान तो
धर्मना ज ‘आदिनाथ’ छे, पापना नहि. भगवाननो उपदेश तो भवथी तरवानुं ज
निमित्त छे, पापनुं निमित्त ते नथी. आथी भक्त कहे छे के हे भगवान! जेम मेडी उपर
चडनारने दोरीनो सहारो छे तेम मोक्षगमननी