Atmadharma magazine - Ank 257
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: फागण: आत्मधर्म :२३:
श्रेणीमां चडतां अमने आपना चरणनी भक्तिनो सहारो छे. आपनी वीतरागतानुं
अने सर्वज्ञतानुं बहुमान अमने भवमां डुबवा देतुं नथी. आपना चरणनो सहारो
लेनारा भव्य जीवो परभावमां डुबता बचीने मोक्षने साधे छे. मोक्षमार्ग आपे बताव्यो
छे तेथी आप ज मोक्षमार्गना नेता छो, आप ज मोक्षमार्गे दोरी जनारा छो.
जुओ तो खरा, केवा सुंदर भावथी स्तुति करे छे!
प्रभो! हुं आपनी स्तुति करुं छुं. आपनी स्तुति कोण न करे? मोक्षना ईच्छुक
जीवो आपनी ज स्तुति करे छे ने आपना ज मार्गने आदरे छे. अहा, जगतमां जेटला
उत्तम जीवो छे ते बधाय आपनी ज स्तुति करे छे.
प्रश्न:– भगवान तो पर द्रव्य छे, समकिती वळी परनी स्तुति करे?
उत्तर:– भाई, तें हजी वीतराग परमात्माना गुणनो महिमा जाण्यो नथी
एटले तने आवो प्रश्न ऊठे छे. सर्वज्ञ परमात्मा प्रत्ये स्तुतिनो जेवो भाव
ज्ञानीने उल्लसे छे तेवो अज्ञानीने नहि उल्लसे. भले भगवान छे तो परद्रव्य,
पण पोतानुं ईष्ट–साध्य एवी जे वीतरागता ने सर्वज्ञता ज्यां भगवानमां देखे छे
त्यां ते गुण प्रत्येना बहुमानथी धर्मीनुं हृदय उल्लसी जाय छे. वीतरागतानो जेने
प्रेम छे ते वीतराग सर्वज्ञ परमात्माने देखतां भक्ति करे छे. भक्ति वखते भले
शुभराग छे पण तेमां बहुमान तो वीतरागस्वभावनुं ज घूंटाय छे, ने एनुं ज
नाम वीतरागनी भक्ति छे.
चैतन्यनी अचिंत्यशक्ति खीली तेनो महिमा शब्दोथी पूरो थाय तेम नथी.
समवसरणमां १००८ नामोथी उत्तम स्तुति करीने छेवटे ईन्द्र कहे छे के हे नाथ!
आ शब्दोथी के आ विकल्पोथी आपनी स्तुति पूरी नहि थाय. ज्यारे आ विकल्प
तोडीने निर्विकल्पपणे स्वरूपमां ठरशुं ने वीतराग थाशुं त्यारे आपनी स्तुति पूरी
थशे.
अहा, केवळज्ञानना दिव्यप्रकाश सहित तीर्थंकरदेव समवसरणमां गणधरो
अने मुनिवरोनी सभा वच्चे बिराजता होय ने ईन्द्र नम्रपणे स्तुति करता
होय...त्यारे तो ए दिव्य स्तुति सांभळतां त्रणलोकना जीवो मुग्ध बनीने थंभी
जाय छे, देवो तो शुं, तीर्यंचोना टोळां पण स्तब्ध बनी जाय छे के अरे, आ तो
कोण स्तुति करनार! ने ईन्द्र जेवा जेनी आवी स्तुति करे ए भगवाननो महिमा
केटलो? एम सर्वज्ञताना महिमामां ऊंडा ऊतरी जतां कोई कोई जीवो तो
सम्यग्दर्शन पण पामी जाय छे. अहा, सर्वज्ञनी स्तुति कोनुं मन मुग्ध न करे?
आत्मानुं हित करवा जे तैयार थयो