करे तेने अमे भगवाननो खरो भक्त कहेता नथी. रागने ईच्छे ते वीतरागनो भक्त
केम कहेवाय? अहो, आपनी सर्वज्ञताने लक्षमां लईने जेनुं चित्त आपनी भक्तिमां
लीन थयुं तेने जगतनो भय होय नहि. तारी भक्ति करतां मारा सर्वज्ञ स्वभावनुं मने
भान थयुं ने ते स्वभावनुं शरण लीधुं त्यां हे नाथ! क्रूर कर्मना उदयरूप सिंह के
प्रतिकूळताना संयोग तेनी दोडमां अमे दबाई जवाना नथी, कर्मरूपी सिंहनो पंजो हवे
अमारा उपर चलावानो नथी. कोई कर्ममां के कोई संयोगमां एवी ताकात नथी के मारी
भक्तिने तोडी शके. प्रभो! सर्वज्ञस्वभावनी सन्मुख थईने आपनी भक्ति करतां करतां
अमेय आपना जेवा थईशुं.