: फागण : आत्मधर्म : 1A :
भक्तामर–स्तोत्र
‘भक्तामर–स्तोत्र’ ए जैनसमाजमां सर्वप्रसिद्ध छे; मुनिदशामां
झूलता मान– तूंगस्वामी जेवा एक आध्यात्मिकसन्ते करेली
जिनेन्द्रभगवाननी आ स्तुतिमां केवा हृदयस्पर्शी
अध्यात्मिकभावो भरेला छे! ते जोईने जिनेन्द्रभक्त–मुमुक्षुनुं हैयुं
आनंदथी डोली ऊठे छे. आ स्तोत्र जेटलुं प्रसिद्ध छे तेना
प्रमाणमां एमां रहेला अध्यात्मभावो ओछा प्रसिद्ध हता; पू. श्री
कानजीस्वामीए आ स्तोत्र उपर प्रवचनो करीने एना
अध्यात्मभावो खोल्यां छे. अध्यात्मरस सहितनी जिनभक्ति
केवी होय,–ने भगवानना खरा भक्त केवा होय,–तेनुं
विशिष्टस्वरूप आपणने आ प्रवचनोमां जोवा मळे छे.....जे
खरेखर भक्तहृदयने अतीव आनन्दित करे छे. अहीं एनो थोडो
थोडो नमूनो अवारनवार आपता रहीशुं.
–ब्र० हरिलाल जैन
भक्तामर–स्तोत्र ए भगवान आदिनाथ तीर्थंकरनी स्तुति छे. भगवान
ऋषभदेव जाणे समवसरणमां साक्षात् बिराजी रह्या होय, देव–देवेन्द्रो आवीने
तेमना चरणोमां भक्तिथी मस्तक झुकावता होय, ने तेमनी सामे ऊभा ऊभा पोते
भावभीनी स्तुति करता होय! एवी रीते श्री मानतुंगस्वामीए आ स्तुति करी छे.
स्तुतिमां जिनेन्द्रमहिमानो अद्भुत धोध वहेवडाव्यो छे.
प्रभो! आपनो आत्मा चैतन्यप्रभाथी झळकी ऊठ्यो छे, तेनी झांई जाणे
नखमांथी पण ऊठी रही होय–एम नखनी प्रभा झळकी रही छे. ने तेनां किरण वडे
ईन्द्रना मुगटना मणि झगझगे छे. देवेन्द्रना मुगटमणिनो महिमा अमने नथी भासतो,
अमने तो आपना नखनी प्रभानो महिमा भासे छे, आपना चरण पासे ईन्द्रोनां मणि
अमने झांखा लागे छे. जुओ ईन्द्रना मुगटना मणिनो प्रकाश भगवानना नख उपर
पडे छे एम न कह्युं पण भगवानना नखनो प्रकाश ईन्द्रना मुगट उपर पडे छे एम
कहीने ईन्द्रना मुगट करतां भगवानना चरणनी महत्ता बतावी. हे नाथ! ईन्द्रनो मुगट
पण आपना चरणमां नमे छे तेथी ज शोभे छे. तीर्थंकरना दिव्य रूपनी शी वात!
ईन्द्रोनुं रूप पण जेनी