Atmadharma magazine - Ank 257
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: 2A : आत्मधर्म : फागण :
पासे झांखुं पडी जाय–एवुं तो एना देहनुं रूप! त्यां आत्माना अतीन्द्रियरूपनी तो वात
ज शी करवी! केवळज्ञान खीली गयुं तेना महिमानी शी वात?.....सर्वज्ञनी स्तुतिमां
भेगो आत्मानो महिमा घूंटातो जाय छे, ते खरी स्तुति छे, ने तेनो ज खरो लाभ छे.
हे नाथ! ईन्द्र आपना चरणोमां नमे छे तेथी एम एम समजीए छीए के,
रागना फळरूप ईन्द्रपद करतां वीतरागताथी मळतुं सर्वज्ञपद जगतमां श्रेष्ठ अने
आदरणीय छे. चैतन्यनी उत्कृष्ट वीतराग पदवी पासे जगतना बधाय पद तूच्छ भासे
छे.
प्रभो! अमारुं मस्तक आपना चरणोमां नम्युं ने नम्युं, ते हवे बीजाने कोई
काळे नमे नहीं. आपनी भक्तिना अवलंबनना बळवडे अमे भवसागरने तरी जशुं
एटले के वीतरागभावना घोलन वडे रागने तोडीने सर्वज्ञताने पामशुं. तारी भक्ति
करतां करतां अमेय तारा जेवा थईशुं. भगवान जेवो भाव पोतामां प्रगट करवो ते ज
भगवाननी परमार्थ स्तुति छे.
प्रभो! आपनी स्तुति करतां, आपनी सर्वज्ञताने ज्यां अमे प्रतीतमां लईए
छीए त्यां तो मिथ्यात्वना टूकडेटूकडा थई जाय छे ने पापनो समूह छिन्नभिन्न थईने
भागे छे.
जुओ, आ भगवानना भक्त! साचा भावथी भगवाननी भक्ति करवा जे
ऊभो थयो तेनी भक्तिना रंगमां भंग पडे नहि; वीतराग स्वभावने भूलीने वच्चे
रागने ते कदी आदरे नहि; बहारमां लक्ष जाय तो वीतराग अर्हंतदेवनो आदर ने
अंदरमां लक्ष जाय तो वीतरागी आत्मस्वभावनो आदर. एनाथी विरुद्ध बीजा कोईने
ते आदरे नहि; एटले हवे वीतरागस्वभावना आदरथी रागने तोडीने वीतराग थये ज
छूटको.
भक्त कहे छे: प्रभो! केवळज्ञानथी खीलेली आपनी ज्ञानप्रभानी तो शी वात?
आपना देहनी अने समवसरणनी शोभा पण कोई दिव्य अचिंत्य छे. आपना चरणनी
दिव्यप्रभा पासे ईन्द्रना मुगटमणि अमने झांखा लागे छे. जगतनो वैभव अमने प्रिय
नथी, अमने तो आपना चरणोनी भक्ति ज प्रिय छे. अहा, अंतमां सर्वज्ञपणाने
साधतां साधतां साधकसन्तोने भगवान प्रत्ये भक्तिनो प्रेम उल्लस्यो छे. जेम माता
प्रेमवश पोताना पुत्रना गाणां गाय तेम अहीं भगवानमां सर्वज्ञता, वीतरागता वगेरे
जे गुणो प्रगट्या छे तेनी लगनी लगाडीने, परम प्रेमथी भक्त तेनां गाणां गाय छे.
पोताने ते गुण गोठया छे ने पोतामां तेवा गुणो प्रगट करवा मांगे छे तेथी तेनां गाणां
गाय छे. ए गाणां कोई बीजाने माटे नथी गाता, पण पोतामां ते गुणो