Atmadharma magazine - Ank 257
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : आत्मधर्म : 3A :
प्राप्त करवानी जे भावना जागी छे ते भावनाने ज पोते मलावे छे. तेथी समन्तभद्र
स्वामीए कह्युं छे के–‘
वन्दे तद्गुणलब्धये’ .
हे जिनेश! में आपना अचिंत्यगुणोने ओळख्या छे तेथी मने आपना उपर
प्रमोद अने बहुमान जाग्युं छे. गुणोनी ओळखाण सहितनी भक्ति ते ज खरी भक्ति
छे. आवी ओळखाण सहित कहे छे के हे जिनेन्द्र! केवळज्ञान पामीने आपनुं चैतन्यद्रव्य
झळकी ऊठयुं; आपना आ चैतन्यझबकारानी तो शी वात! आपना केवळज्ञानप्रकाशनो
तो अचिंत्य महिमा छे; ए केवळज्ञान थतां त्रणलोकमां अजवाळां थाय, अने तेथी साथें
साधकदशामां आपने जे पुण्य थया तेना फळमां आपनुं जे दिव्य शरीर रचायुं–ते
शरीरनी शोभानी पण शी वात! आपनो आत्मा तो लोकोत्तर ने देह पण लोकोत्तर!
चक्रवर्तीओ अने ईन्द्रो काळजेथी भगवानने नमी पडे छे.–हे नाथ! आपनी पासे अमे
न नमीए तो जगतमां अमारे नमवानुं बीजुं स्थान क््यां छे? प्रभो! अमारुं हृदय
आपने जोतां उल्लसी जाय छे. अहा, आपनी वीतरागता! जगतमां जेनो जोटो नथी.
ए वीतरागता प्रत्ये नमेलुं अमारुं हृदय हवे कदी राग प्रत्ये नमवानुं नथी. हे देव!
जगतमां मोक्षार्थी जीवोने नमवानुं स्थान होय तो एक आप ज छो, एटले परमार्थे
आपना जेवो जे वीतरागी ज्ञानस्वभाव छे ते ज मोक्षार्थीने आदरणीय छे. राग तरफ
जे नमे ते तारो भक्त नहि. बहारमां कुदेवादिने माथां झूकावे एनी तो शी वात, पण
एम न करे ने अंदरमां सूक्ष्म रागना कणियाथी धर्मनो लाभ थशे एम माने तो तेणे
पोतानुं माथुं राग तरफ झूकाव्युं छे, वीतरागनो ते खरो भक्त नथी. वीतरागना
भक्तनुं माथुं रागने न नमे. अहीं तो ईन्द्र कहे छे के प्रभो! आपने अमे न नमीए तो
जगतमां एवुं बीजुं कयुं स्थान छे के ज्यां अमे नमीए? ईन्द्रपदथी विशेष पुण्यवंत
आपना सिवाय कोण छे?–पवित्रतामां अने पुण्यमां आप ज सर्वोत्कृष्ट छो तेथी
आपने ज अमे नमीए छीए. जगतना सामान्य जीवो ईन्द्रने पुण्यवंत गणीने आदरे,
ने ते ईन्द्रो भगवान जिनेन्द्रदेवने महान भक्तिथी आदरे छे.–आवा भगवाननी स्तुति
हुं भक्तामर–स्तोत्रद्वारा करुं छुं.
भगवानना चरणोमां भक्तिथी नमनारा ईन्द्रो जाणे कहे छे के हे नाथ! अमारा
माथाना मुगटना मणि करतां तारा पगना नखनी शोभा विशेष छे; तारा चरणनी
भक्ति तो अज्ञान अंधकारनो ने पापनो नाश करनारी छे. ए ताकात अमारा मुगट
मणिना तेजमां नथी; तेथी अमारा मुगटवंता मस्तक आपना चरणोमां झूकी रह्या छे.
प्रभो; आपना आत्मानी सर्वज्ञतानुं दिव्य तेज तो अमने ज्ञानप्रकाश आपे छे ने
आपना चरणनी