Atmadharma magazine - Ank 257
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: 4A : आत्मधर्म : फागण :
हे आदिनाथ जिनेन्द्र! आ भरतक्षेत्रमां आप ज आद्यगुरु छो. आपनो
जुओ तो खरा, आ भगवाननी भक्ति! पोताना आत्माने भगवानना
जुओ, रागने माटे आप आलंबनरूप छो–एम न कह्युं, पण वीतरागभावरूप
धर्मने माटे ज भगवान आलंबनरूप छे–एम कह्युं; केम के राग थाय ने पुण्य बंधाय
एना उपर भगवानना भक्तनुं लक्ष नथी.
(अनुसंधान माटे जुओ पानुं –२२)