: फागण : आत्मधर्म : 5A :
‘समयसार–कलशटीका’ उपरनां प्रवचनो:
शुद्धात्माने नमस्काररूप
अप्रतिहत मांगलिक
“फागण सुद बीज” ए सोनगढमां सीमंधरनाथनी मंगलप्रतिष्ठानो दिवस,
ने सं. २४९१ना फागण सुद बीजे तेनी पच्चीसमी वर्षगांठ; ए मंगलदिने
सोनगढमां सीमंधरभक्त श्री कानजीस्वामीना प्रवचनमां समयसार
कलशटीकाना वांचननो प्रारंभ थयो. तेमांथी मंगलप्रवचन अहीं आप्युं छे.
नमः समयसाराय रवानुभूत्या चकासते
चित्स्वभावाय भावाय सर्वभावान्तरच्छिदे।।१।।
अनेकान्तरूपी अमृतने पीनारा अमृतचंद्राचार्य, जाणे के चालता सिद्ध होय–एवी
मुनिदशामां झूलता हता, तेमणे कुंदकुंदप्रभुना हृदयनुं रहस्य समयसारनी टीकामां खोल्युं. ते
टीकामां २७८ कलश छे, जेम मंदिर उपर सोनानो कळश शोभे तेम समयसाररूपी मंदिरमां
आ श्लोको सोनाना कलशनी जेम शोभे छे. बराबर आजे सीमंधरभगवाननी
पधरामणीनो दिवस छे. मंदिरनी प्रतिष्ठानो आजे दिवस छे ने आजे आ शास्त्र शरू थाय
छे. आ समयसारना कळशनी टीका श्री राजमल्लजी पांडेए ढुंढारी भाषामां लगभग ४००
वर्षो पहेलां लखी हती तेना उपर आजे प्रवचनो शरू थाय छे.
आ पहेलो कळश ए समयसारनी टीकानुं अपूर्व मांगळिक छे. आत्मानो शुद्ध
अस्तिस्वभाव शुं छे, तेनुं अलौकिक वर्णन छे. आत्मानो सर्वज्ञ स्वभाव अगाध
सामर्थ्यथी भरेलो छे, तेनी अतीन्द्रिय स्वच्छतामां लोकालोक सहेजे जणाई जाय छे.
जेम अगाध आकाशमां अनेक नक्षत्रो–ताराओ झळके छे, तेम स्वच्छ चैतन्यआकाशमां
लोकालोक ज्ञेयपणे (आकाशमां एक नक्षत्रनी माफक) झळके छे. चैतन्यनी स्वच्छताने
जोतां समस्त ज्ञेयो सहेजे जणाई जाय छे. कांई ज्ञेयोने जाणवा माटे बहिरलक्ष करवुं
नथी पडतुं. आवा ज्ञानस्वरूप जे शुद्धआत्मा ते ‘समयसार’ छे, तेनुं आमां वर्णन छे.
तेने अहीं सारभूत गणीने मांगळिकमां नमस्कार कर्यो छे.
अहो, अमृतचंद्राचार्यना आ मंगला–