Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : आत्मधर्म : प :
४२ अहा! तीर्थंकरो अने मुनिओनुं जीवना तो स्वानुभववडे अध्यात्मरसमां ओतप्रोत
बनेलुं छे–एमनी शी वात!
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४३ जैनशासनमां अनेक श्रावको पण एवा धर्मी पाकया छे के जेमनुं अध्यात्मजीवन
अनेक जिज्ञासुओने अध्यात्मनी प्रेरणा जगाडे छे.
*
४४ सम्यक्त्वनी अने निर्विकल्प स्वानुभवनी आत्मस्पर्शी चर्चाओ पण
सम्यक्त्वपिपासुने अत्यंत अह्लादकारी छे.
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४प स्वानुभवी संतनी अद्भुत–अचिंत्य परिणतिनुं चिंतन करतां परिणाममां
स्वानुभवनो उल्लास जागे छे.
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४६ भाई, संतोए पोते आत्मामां जे कर्युं ते ज तने बतावे छे.
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४७ अहा, आत्माना स्वानुभवथी मोक्षने साधवानो आवो अवसर तने हाथमां आव्यो
छे.....माटे हे जीव! तुं जाग.
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४८ सन्तोंके प्रतापसे सब अवसर आ चूका है....हवे शुभथी आगळ जईने शुद्धतानी
अपूर्व धारा उल्लसाव.
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४९ मोक्षमार्ग शुद्ध आत्माने आश्रित छे, तेना विना मोक्ष साधी शकतो नथी.
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प० वस्तु पोतानी सहज शक्तिथी कार्यरूप परिणमे छे,–एम जाणीने स्वाश्रय करतां
मोक्षमार्ग प्रगटे छे.
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प१ दरेक वस्तुना द्रव्य–गुण–पर्यायमां ज तेनी मर्यादा छे; बीजाना द्रव्य–गुण–पर्याय
तेनी मर्यादाथी बहार छे.
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प२ वस्तुस्वरूपनी व्यवस्था जाणीने संतोए पोताना शुद्धस्वरूपमां मतिने व्यवस्थित
करी छे.