Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : आत्मधर्म : १९ :
जिनवचननो सार
(कलशटीका–प्रवचनो)
जिनवचनमां एटले के दिव्यध्वनिद्वारा कहेला
उभयनयविरोधध्वंसिनि स्यात्पदाङ्के
जिनवचसि रमन्ते ये स्वयं वान्तमोहाः।
सपदि समयसारं ते परं ज्योतिरुच्चे–
रनवमनयपक्षाक्षुण्णमीक्षन्त एव।।४।।
ते आसन्नभव्य जीवो तुरत ज शुद्ध जीवने प्रत्यक्षपणे प्राप्त करे छे–देखे छे,
केवो छे शुद्ध जीव? अतिशयवाळी ज्ञानज्योतिरूप छे. आवा आत्माना अनुभव
सम्यग्दर्शन थयुं त्यां ज शुद्धात्मानी प्रत्यक्ष प्राप्ति कही दीधी. राग अने मनना
अवलंबन वगर आत्मानो साक्षात्कार थयो, तेना आनंदनो अनुभव थयो त्यां तेनी
प्रत्यक्ष प्राप्ति थई–एम कह्युं. स्वानुभूतिमां आत्मा आव्यो ते कांई नवो नथी थयो, ते
तो अनादिथी स्वयंसिद्ध हतो ज, पोताने व्यक्त अनुभव नवो थयो, वस्तु कांई नवी
नथी थई. वळी कुमतवाळा कोई एकांत क्षणिक कहे, कोई एकान्त अपरिणामी कहे, कोई
आत्मा