Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : वैशाख :
परिणतिनी पूर्ण शुद्धतानी भावना करी छे. आम कहीने शुद्धद्रव्य अने पर्याय बंनेनुं
ज्ञान करावी दीधुं. वस्तुपणे तो हुं शुद्ध चैतन्यमूर्ति, रागादि उपाधि वगरनो, सुखनो
पूंज छुं– आवा निजस्वरूपनुं भान तो छे, साधकदशा तो छे, पण हजी पर्यायमां कांईक
अशुद्धतानो प्रवाह अनादिथी चाल्यो आवे छे, ते अशुद्धतानो नाश थईने शुद्धात्माना
घोलनवडे मारी परम विशुद्धि प्रगटो.
अशुद्धतानुं निमित्त मोहकर्म छे; ने शुद्धतानुं कारण शुद्धात्मानी भावना छे. हवे
मारी परिणति आ समयसारनी टीका वडे–टीकामां कहेला शुद्धात्माना घोलनवडे.
शुद्धात्मा तरफ ढळे छे, ने मोहना उदय तरफ परिणति ढळती नथी, एटले मोहनो नाश
थईने परिणति शुद्ध थती जाय छे. अने जे कोई श्रोता आ समयसारनी टीकामां कहेला
भावोनुं भावश्रुतवडे घोलन करशे तेने पण मोहनो नाश थशे ने सम्यक्त्वादि
शुद्धपरिणति प्रगट थशे. ‘मारा अने परना मोहना नाशने माटे हुं आ समयसार कहुं
छुं–एम कहीने आचार्यदेवे आ शास्त्रनुं उत्तम फळ बताव्युं छे. आत्मानुं शुद्धस्वरूप
देखाडीने आ शास्त्र मोहनो नाश करावनारुं छे.
आ आत्मस्वरूपनुं ज्ञानस्वरूप ने सुखस्वरूप छे; पर्यायमांथी अशुद्धतानो
विनाश थतां ते ज्ञान ने सुख व्यक्त थाय छे. पोताना स्वभावमां हता ते ज पर्यायमां
प्रगट थाय छे.
प्रश्न:– जीवनो स्वभाव तो शुद्ध छे; पर्यायमां अनादिथी तेने जे अशुद्धता छे ते
अशुद्धतामां कांई निमित्तमात्र छे के नहीं? स्वाधीन वस्तु पोते विकाररूपे परिणमी तो
तेमां कोई निमित्त छे के नहि?
उत्तर:– हा, निमित्तमात्र पण छे.–कोण निमित्त छे? तो कहे छे के मोहकर्मना
उदयनो विपाक अशुद्धतानुं निमित्त छे. जीवना अशुद्धभावोथी पूर्वे बंधायेलुं जे मोहकर्म
ते उदयकाळे अशुद्धतानुं निमित्त छे.–पण अहीं तो कहे छे के शुद्धात्मस्वभावना घोलनने
लीधे शुद्धता वधतां, ते मोह अशुद्धतानुं निमित्त थया वगर ज नष्ट थई जशे.
समयसारनी टीका करतां करतां भावश्रुतमां शुद्धात्मानुं एवुं जोसदार घोलन चालशे के
परिणति शुद्ध थई जशे ने मोहनी मलिनता तेमांथी नीकळी जशे. परिणतिनुं
शुद्धस्वरूपमां ज व्याप्य–व्यापकपणुं थशे एटले अशुद्धता साथेनुं व्याप्य–व्यापकपणुं मटी
जशे. शास्त्रनुं आवुं फळ छे, एटले आवो भाव जे प्रगट करे ते ज आ शास्त्रने
समज्यो कहेवाय. अहो, आत्माने न्याल करी द्ये एवा भावो सन्तोए आ शास्त्रमां
भर्या छे; आ तो भागवतशास्त्र छे, भगवान आत्मानुं भागवत छे.